व्यवस्था के कार्यक्रम (समितियाँ)
- 1. शिक्षा-संस्कार कार्य-व्यवस्था समिति
- 2. सार्वभौम न्याय-सुरक्षा कार्य-व्यवस्था समिति
- 3. उत्पादन-कार्य-व्यवस्था समिति
- 4. विनिमय-कोष कार्य-व्यवस्था समिति
- 5. स्वास्थ्य-संयम कार्य-व्यवस्था समिति
7.1 शिक्षा-संस्कार कार्य व्यवस्था समिति
शिक्षा में वस्तु स्वरूप :- सहअस्तित्व सहज अर्थ में भौतिक रासायनिक एवं जीवन क्रियाकलापों का अध्ययन सर्वसुलभ होना है - विकास क्रम, विकास, जागृति क्रम, जागृति में ही यथास्थिति गति सहित परस्परता में उपयोगिता-पूरकता विधि सहित सिद्धांत, अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिंतन (नजरिया) सहज अध्ययन बोध, अनुभव प्रमाण मूलक अभिव्यक्ति, सम्प्रेषणा, प्रकाशन प्रबुद्ध परंपरा।
संस्कार स्वरूप :- जागृति, जागृति सहज प्रमाण, जानना, मानना, पहचानना, निर्वाह रूप में प्रमाण होना, रहना परंपरा है। समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी, भागीदारी को अखण्ड समाज सहज सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी प्रमाण। प्राकृतिक, बौद्धिक, सामाजिक नियमों का पालन करते हुए मानव लक्ष्य को साकार करने के रूप में प्रमाण।
7.1 (1) उद्देश्य -
व्यवहारिक उद्देश्य
मूल उद्देश्य :- सम्पूर्ण मानव मानवत्व सहित व्यवस्था में होना-रहना और समग्र व्यवस्था में भागीदारी सहज प्रमाण परंपरा के रूप में होना-रहना। मन:स्वस्थता पूर्वक मनाकार को साकार करना-रहना।
फलस्वरूप :- जीवन मूल्य और मानव लक्ष्य परंपरा प्रमाण के रूप में प्रमाणित होना, साथ ही साथ विकास विधि से ऊर्जा संतुलन एवं पर्यावरण संतुलन, पदार्थ, प्राण, जीव और ज्ञान अवस्था में संतुलन पूरकता-उपयोगिता सिद्धांत परंपरा के रूप में प्रमाणित होना-रहना है। यही सर्वकालीन सार्थक उद्देश्य है।
मूल उद्देश्य को प्रमाणित करने के क्रम में न्याय, उत्पादन, विनिमय सुलभता, सार्वभौम व्यवस्था विधि में समाहित रहता है। साथ में शिक्षा-संस्कार सुलभता, स्वास्थ्य संयम सुलभता समाहित रहेगा ही। इस विधि से जागृत मानव परंपरा की संभावना आवश्यकता सहज रुप में समीचीन है।