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भाग – तीन

सहअस्तित्व सूत्र व्याख्या

  1. 1. व्यापक सत्ता में सम्पृक्त अनन्त ईकाइयाँ जड़-चैतन्य रूप में नित्य वर्तमान।
  2. 2. सत्ता व्यापक, पारगामी, पारदर्शी है। प्रकृति रूपी ईकाइयाँ अनन्त हैं, प्रत्येक एक रूप, गुण, स्वभाव, धर्म सम्पन्न त्व सहित व्यवस्था समग्र व्यवस्था में भागीदारी सहज वर्तमान है।
  3. 3. व्यापक सत्ता में सम्पूर्ण प्रकृति डूबी, भीगी, घिरी हुई नित्य वर्तमान है, अविभाज्य है।
  4. 4. प्रकृति चार अवस्था में इसी पृथ्वी पर स्पष्टतया विद्यमान है।
  5. 5. सहअस्तित्व नित्य प्रभावी है।
  6. 6. (1) पदार्थावस्था में सभी प्रकार के खनिज

(2) प्राणावस्था में सभी प्रकार के अन्न व वनस्पतियाँ

(3) जीवावस्था में अनेक अण्डज-पिण्डज, जीव संसार

(4) ज्ञानावस्था में मानव।

  1. 7. जागृत मानव परंपरा में मानव मानवत्व सहित व्यवस्था और समग्र व्यवस्था में भागीदारी सम्पन्न होता है। यही मानव में, से, के लिए उपयोगिता पूरकता सहज सूत्र है।
  2. 8. तीनों अवस्था में प्रत्येक एक अपने ‘त्व’ सहित व्यवस्था, समग्र व्यवस्था में भागीदारी करते हुए स्पष्ट है। इसको समझने के लिए ‘अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिंतन’ बनाम ‘मध्यस्थ दर्शन (सहअस्तित्ववाद)’ प्रकाशित है। इन सूचनाओं के आधार पर अध्ययन करने अनुभव करने की स्थिति में मानव समझदार होता है।
  3. 9. नित्य वैभव ही सत्ता में सम्पृक्त प्रकृति चार अवस्था में है। व्यापक वस्तु ही सत्ता, जागृत मानव परंपरा में व्यवस्था सहज प्रमाण ही प्रबुद्धता, संप्रभुता, प्रभुसत्ता है क्योंकि संज्ञानीयतापूर्वक संवेदनायें नियंत्रित होते हैं।
  4. 10. हर नर नारी में, से, के लिये प्रबुद्धता, संप्रभुता, प्रभुसत्ता में, से, के लिये स्वत्व स्वतंत्रता अधिकार समान है। हर नर नारी प्रबुद्धता संपन्न होने का मौलिक अधिकार है। यही वर्तमान में विधि है। विधि-विधान पूर्वक दश सोपानीय परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था है।
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