विकास एवं जागृति है । सम्पूर्ण शब्द-शक्तियों का सद्व्यय ज्ञानकारक एवं अपव्यय अज्ञानकारक है । जो जिसका अपव्यय करता है वह उससे वंचित हो जाता है ।
समस्त कर्मों के फलस्वरूप ही अर्थ, अनर्थ, सुकाम, दुष्कर्म, धर्म, अधर्म तथा मोक्ष-बंधन है । अर्थ, सुकाम, धर्म एवं मोक्षगामी जागृति जीवन कार्यक्रम में सुख तथा इसके विपरीत अनर्थ, दुष्कर्म, अधर्म एवं बन्धन की प्रक्रिया एवं जीवन में समस्या ही दुःख और पीड़ा है ।
धर्म सर्वतोमुखी समाधान है । अर्थ तन, मन, धन है । परम अर्थ अनुभव है । जागृत मानव में सुकाम का तात्पर्य संज्ञानीयता पूर्वक संवेदनाएं नियन्त्रित और प्रमाणित होने से है । मोक्ष भ्रममुक्ति है ।
“अर्थ ही सुख, सुकर्म ही शान्ति, धर्म ही सन्तोष एवं मोक्ष ही परमानन्द है ।”
समस्त इच्छाओं के सात भेद हैं :-
मोक्ष के लिए अर्थ, अर्थ के लिए मोक्ष जो क्रमशः उत्तमोत्तम अधमाधम है । धर्म के लिए अर्थ, अर्थ के लिए धर्म जो क्रमशः मध्योत्तम अधम है । काम के लिए अर्थ, अर्थ के लिए काम जो क्रमशः उत्तम अधम मध्यम है एवं अर्थ के लिए अर्थ जो मध्यम है ।
इच्छा भेद से अन्वेषण, अन्वेषण भेद से गम्यता, गम्यता भेद से अनुभव, अनुभव भेद से मूल्य, मूल्य भेद से सामाजिकता एवं सार्वभौम व्यवस्था है ।
तीन प्रकार की अन्वेषण प्रवृत्तियाँ मानव में पाई जाती हैं :-
(1) सत्यान्वेषण, (2) ऐषणान्वेषण, (3) विषयान्वेषण ।
विषयान्वेषण प्रवृत्तियाँ जीवों में भी दृष्टव्य हैं । शेष दो मानव में ही हैं । इसलिये विषयान्वेषण प्रवृत्तियाँ अपराध से मुक्त नहीं हैं ।
विषयों से अनासक्ति ही विराग है जो विकारों से मुक्ति है । ऐषणाओं से अनासक्ति ही पर-वैराग्य है जो सद्व्ययता की स्वीकृति एवं निर्वाह है ।