• परिवार सभा संबंध, शिक्षा संस्कार संबंध, न्याय सुरक्षा संबंध, उत्पादन कार्य विनिमय कार्य संबंध , स्वास्थ्य संयम संबंध
  • संबंधों की पहचान सहित निर्वाह निरंतरता में स्थापित मूल्य प्रमाणित होता है।

हर संबंधों की पहचान, निर्वाह प्रयोजनों के अर्थ में निरंतरता है।

प्रयोजन हर नर-नारी की आवश्यकता है। स्वयमेव समग्र व्यवस्था मे भागीदारी ही प्रयोजन है।

जीवन मूल्य - 4

मानव मूल्य - 6

स्थापित मूल्य - 9

शिष्ट मूल्य - 9

वस्तु मूल्य - 2

प्रमाण ही मानव समाज गति है।

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सर्वशुभ में स्वशुभ

उपरोक्त अपेक्षायें सर्वशुभ के अर्थ में प्रमाणित होना ही जागृति सहज वैभव है। जागृति ज्ञान, विवेक, विज्ञान सहज संयुक्त वैभव है। यह हर नर-नारी में, से, के लिए स्वत्व स्वतंत्रता अधिकार है।

समझदारी हर मानव में, से, के लिए अविभाज्य वर्तमान है। हर मानव परंपरा के रूप में वर्तमान होना सर्वविदित है। इसी आधार पर हर मानव जागृत अथवा भ्रमित रहना पाया जाता है। हर नर-नारी सहज चाहत जागृति है। जागृति परंपरा सहज विधि से ही सर्व सुलभ होता है।

सर्वमानव में कल्पनाशीलता, कर्मस्वतंत्रता आदिमानव काल से प्रकाशित रहा है। इसका साक्ष्य यही है कि आहार, आवास, अलंकार पद्धतियों को विविध रूप में अपनाया और दूरश्रवण, दूरदर्शन, दूरगमन साधनों में विविधता का होना स्पष्ट है। उक्त क्रिया प्रवृत्ति एवं घटना के अनुसार स्पष्ट है कि सभी देशकाल में मानव ने कल्पनाशीलता, कर्म स्वतंत्रता का सतत प्रयोग प्रस्तुत किया है।

सर्व मानव कल्पनाशीलता के लिये कर्म स्वतंत्रता का और कर्म स्वतंत्रता के लिए कल्पनाशीलता का प्रयोग करते आया है। आदिमानव काल से इक्कीसवीं (21वीं) शताब्दी तक मानव परंपरा विविध समुदायों के नाम से प्रचलित रही जो राज्य व राष्ट्र कहलाते रहे।

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