राज्य-राष्ट्र की अस्मिता, स्वीकृति व मान्यता में अखण्डता, सार्वभौमता व अक्षुण्णता सहज पावन शब्दों को दुहराया जाता है। यह भी देखने को मिलता है कि अधिकांश देशों की भौगोलिक स्थितियाँ व उनमें निवास करने वाले लोगों की जनसंख्या बदलती रही। ऐसे बदलाव के मूल में मानव सहज कल्पनाओं की विविधता का होना ही समझ में आता है।
मानव समुदाय रूप में इक्कीसवीं शताब्दी तक नस्ल, रंग, भाषा, जाति, मत, पंथ, सम्प्रदाय, वर्ग रूप में परस्पर पहचान होना पाया जाता है। नस्ल-रंग जंगल युग से, भाषा-जाति ग्राम युग से, मत-पंथ सम्प्रदाय धार्मिक राजनीतिक युग से, वर्ग आर्थिक राजनीतिक युग से गण्य हुआ है। इस शताब्दी के आरंभ तक इस धरती के सर्वाधिक देश जिनका अपना अपना संविधान है आर्थिक-राजनीति परस्त हो चुके है।
जागृतिपूर्वक अखण्ड रूप में सर्वतोमुखी समाधान सम्पन्न सामाजिकता सहज (धार्मिकता), आर्थिक और सार्वभौम व्यवस्था रूप में पाये जाने वाले परिवार मूलक राज्य व्यवस्था नीति ही, जागृतिपूर्ण परंपरा स्थापित होने की आवश्यकता धरती बीमार होने के कारण हो चुकी है।
अभी तक ऐसी स्थिति घटित न होने के कारण मानवीयतापूर्ण विचारधारा ध्रुवीकृत न हो सकी है। अब अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिंतन ज्ञान विचार “मध्यस्थ दर्शन” सहअस्तित्ववाद अध्ययनार्थ प्रस्तुत है।
मानव परंपरा सहज वैभव को संज्ञानीयता सहज धारक-वाहकता में पहचाना जाता है। परंपरा में संतान विधि समाई रहती है। यही वंश एवं पीढ़ी से पीढ़ी के रूप में पहचान है। मानव परंपरा में कल्पनाशीलता विधि से पहचान करते हुए आहार, आवास, अलंकार व दूरश्रवण, दूरगमन, दूरदर्शन संबंधी यंत्रों व वस्तुओं का उत्पादन सुलभ हो गया है। यह मानव की परिभाषा के अनुसार अधूरा रहा। मानव परिभाषा “मनाकार को साकार करने वाला मन:स्वस्थता का आशावादी है व जागृत होने व प्रमाणित होने वाला है।”
हर मानव मानसिक रूप में स्वस्थ, शारीरिक रूप में स्वस्थ, व्यवहार रूप में स्वस्थ, उत्पादन रूप में स्वस्थ, व्यवस्था रूप में स्वस्थ रहना चाहता है। यह परंपरा में सुलभ न होने के कारण मानव जाति समुदाय मानसिकता से ग्रसित पाई जाती है।
विचार
मन:स्वस्थता का प्रमाण परंपरा सुलभ होना आवश्यक हो गया है क्योंकि धरती बीमार हो रही है। धरती की तापग्रस्तता, जंगल का कम होना, खनिज, कोयला, तेल, विकिरणीय धातुओं का शोषण आदि सर्वविदित है। इसके फलस्वरूप प्रदूषण प्रभाव, मानव में व्यापार मानसिकता, शोषण संघर्ष वंचना के लिए शिक्षण-प्रशिक्षण व प्रौद्योगिकी प्रवृत्तियों में वृद्धि हुई है।