11 (2)
- 1. मैं अपने में क्या हूँ?
- 1.1 मैं मानव हूँ।
- 1.2 मैं मनाकार को साकार करने वाला मन:स्वस्थता का आशावादी और मन:स्वस्थता सहज पारंगत प्रमाण होने-करने वाला हूँ।
- 2. मैं कैसा हूँ?
- 2.1 मैं ज्ञानावस्था सहज प्रतिष्ठा सम्पन्न इकाई हूँ।
- 2.2 मैं शरीर व जीवन सहज संयुक्त साकार रूप हूँ।
- 2.3 मानव परंपरा प्रदत्त है मेरा शरीर और अस्तित्व में परमाणु में विकास फलत: जीवन सहज स्व स्वरूप हूँ।
- 2.4 मैं जीवन सहज रूप में जानने, मानने वाला व मानव रूप में पहचानने, निर्वाह करने का क्रियाकलाप करता हूँ।
- 2.5 मैं शरीर को जीवंत बनाये रखता हूँ - चेतना सहित पाँच ज्ञानेन्द्रियों, पाँच कर्मेन्द्रियों का दृष्टा हूँ।
- 2.6 मैं मानवत्व सहित व्यवस्था हूँ, समग्र व्यवस्था में भागीदारी करने योग्य हूँ।
11 (3)
- 3. मैं क्या चाहता हूँ?
- 3.1 मैं बौद्धिक समाधान, भौतिक समृद्धि सम्पन्न होना चाहता हूँ।
- 3.2 मैं जीवन जागृति में पारंगत प्रमाण सम्पन्न और उस में निरंतर जीना-होना-रहना चाहता हूँ।
- 3.3 मैं भ्रम, भय, कुण्ठा, निराशा, पशुता, क्रूरता, द्रोह-विद्रोह, शोषण संघर्ष युक्त अपराध रूपी जीव चेतना से मुक्त जागृत मानव चेतना संपन्न स्वयं की पहचान बनाये रखना चाहता हूँ।
- 3.4 अखण्ड समाज सार्वभौम व्यवस्था में स्वयं स्फूर्त विधि से भागीदारी करना चाहता हूँ।
- 3.5 सर्वशुभ परंपरा में भागीदारी करने योग्य क्षमता-योग्यता-पात्रता सम्पन्न रहना चाहता हूँ।
- 3.6 सर्वशुभ के अर्थ में साथ ही सर्वशुभ सौभाग्य संपन्न होते रहना चाहता हूँ।