- ● परिवार में आवश्यकता से अधिक उत्पादन ही स्वावलम्बन समृद्धि सहज वैभव,
- ● परिवार में समाधान समृद्धिपूर्वक अभिव्यक्ति, सम्प्रेषणा, प्रकाशन सहज वैभव,
- ● ज्ञान, विवेक, विज्ञान सम्पन्नता सहित अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था में, से, के लिए स्वयंस्फूर्त अर्थात् समझदारी का ही वैभव फलस्वरूप दश सोपानीय स्वराज्य व्यवस्था में भागीदारी करना ही वैभव है।
4.6 (1) राष्ट्र
राष्ट्र अपनी सम्पूर्णता में चारों अवस्था व पदों में यथा स्थिति उपयोगिता-पूरकता विधि सहज वैभव है।
तात्विक = अखण्ड समाज सार्वभौम व्यवस्था का संयुक्त स्थिति गति ही राष्ट्र है।
बौद्धिक = जागृत मानव परंपरा, मानवीय आचार संहिता रूपी संविधान सर्वसुलभ होना, वर्तमान रहना है।
व्यवहारिक = अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिंतन मध्यस्थ दर्शन सहअस्तित्व-वाद-शास्त्र एवं विगत से प्राप्त मानवोपयोगी उत्पादन कार्यों में प्रयुक्त होने का सम्पूर्ण तकनीकी समेत शिक्षा-संस्कार, न्याय-सुरक्षा, उत्पादन-कार्य, विनिमय-कोष और स्वास्थ्य-संयम सहित अखण्ड समाज सार्वभौम व्यवस्था रूप में परंपरा का होना-रहना।