प्रकृति में नियंत्रण, संरक्षण निरंतर बना ही रहता है। अतः सत्ता में नियंत्रण स्पष्ट है। इसे ही अध्यात्म संज्ञा दी गयी है या सत्ता का दूसरा नाम ही अध्यात्म है। दूसरे नाम से अध्यात्म साम्य ऊर्जा सहज अस्तित्व का स्वरूप है। सहअस्तित्व ही मूल ध्रुव स्थिर और निश्चय होने के कारण मानव भी निश्चयता, स्थिरता और उसकी निरंतरता सहज विधि से परंपरा के रूप में वैभवित होना चाहता है, यह नित्य समीचीन है। इसे स्पष्ट कर देना ही अनुभवात्मक अध्यात्मवाद का अभीष्ट है।
अस्तित्व में अनुभव ही भ्रम मुक्ति का नित्य स्रोत है। इसका क्रम अनुभवगामी विधि से अध्ययनपूर्वक, अनुभवमूलक विधि से अभिव्यक्त होना ही एक मात्र दिशा और उपाय है। सम्पूर्ण अस्तित्व को चार अवस्था में अध्ययन करने की व्यवस्था “मध्यस्थ दर्शन सहअस्तित्ववाद” में प्रावधानित हुआ है।
अनुभव करने के लिये वस्तु चारों अवस्था सहज सहअस्तित्व रूप में वर्तमान सहअस्तित्व ही है। अस्तित्व में अनुभूत होना अनुभवमूलक विधि से बोधगम्य कराना इस विधि से सहज हुआ है कि स्थिति सत्य के रूप में अस्तित्व बोध होना जो स्वयं में, सत्ता में संपृक्त प्रकृति मानव भी है। सहअस्तित्व के रूप में जड़-चैतन्य प्रकृति वर्तमान सहज रूप में बोध होना अध्ययन प्रक्रिया सहज विधि से होता है। अस्तित्व में पाये जाने वाले प्रकृति सहज वस्तुओं के परस्परता में दिशा और कोणों को पहचाना जाता है। जैसा दो वस्तुओं को कहीं भी स्थापित कर देखें इनमें परस्परता साभिमुख विधि से वर्तमान रहता है। साभिमुखता का तात्पर्य एक-दूसरे के सम्मुख रहने से है। ऐसी सभी सम्मुखताएँ अभ्युदय के अर्थ में ही होना पाया जाता है। इसका मूल सूत्र प्रत्येक एक अपने त्व सहित व्यवस्था के रूप में होना ही है, ऐसे प्रत्येक सम्मुखताएँ सविपरीत दिशा-बोध कराता है।
प्रत्येक एक अपने में अनन्त कोण सम्पन्न रहता ही है। किसी एक में एक बिन्दु के साथ सभी ओर कोणों को बनाते जाएँ, कितने भी बनाए और भी बनाये ही जा सकते हैं। ऐसी स्थिति समीचीन रहती है। इस प्रकार इकाई में अनन्त कोण और परस्परता में दिशा स्पष्ट होना पाया जाता है क्योंकि सभी ओर से हर वस्तु दिखता है।
आदर्शवादी विचार के अनुसार मोक्ष का स्वरूप
ईश्वर को रहस्यमय और सर्वशक्तिमान सृष्टि, स्थिति और लय कार्यों पर/में अधिकार रखने वाला माना गया है। यह मूलभूत मान्यता विविध प्रकार से दिखने वाली विविध धार्मिक मूल ग्रन्थों में प्रतिपादित किया गया। इनमें से अधिकांश रहस्यमयी ईश्वर केन्द्रित विचारों के अनुसार जीव और जगत का उत्पत्ति होना, स्थिति होना, लय होना माना गया। उनमें से कुछ विचार और दर्शन इस बात को भी स्वीकारता है, प्रतिपादन