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परिपक्वावस्था (यही पीढ़ी से पीढ़ी उन्नत होने का प्रेरणा स्रोत जागृत परंपरा के अर्थ में आयु आवश्यकता कर्त्तव्य घोषणा)

परिपक्वता की निरंतरता ही परंपरा

(12) शिशु काल में लालन-पालन, पोषण-संरक्षण

लालन :- शिशु में खुशियाली मुस्कान की अपेक्षा में किये गये पोषण-संरक्षण, भाषा-अभाषा, भाव-भंगिमा, मुद्रा, अंगहार रूपी उपक्रम प्रकटन।

पालन :- शरीर पुष्टि, मनःस्वस्थता स्वस्थता के लिए किया गया उपक्रम।

पोषण :- शरीर भाषा संबोधनों को प्रमाणित करना।

संरक्षण :- शारीरिक व मानसिक संतुलन संरक्षण।

(13) शिशु काल से जागृति यात्रा घोषणा

  1. 1. शिशुकालीन लालन-पालन, पोषण-संरक्षण कार्यों का दायित्व व कर्त्तव्य अभिभावकों का है।
  2. 2. मानव सन्तान का लालन-पालन, पोषण-संरक्षण का कार्य अभिभावक का है। इस परंपरा में उत्सव, प्रसन्नता, खुशियाली है। शैशवकाल के अनंतर पड़ोसी बन्धुओं का मानव संस्कार पक्ष में दायित्व रहेगा।
  3. 3. मानव में सभी संबंधों में संबोधन सभी परिवार परंपरा में प्रचलित है। इसे अखण्डता सहज प्रयोजन सार्थकता के अर्थ में प्रमाणित करना जागृति है।

मानवत्व सहित व्यवस्था में जीना-

  1. 4. मानव परंपरा शिक्षा संस्कार सहित जागृति पूर्वक अपने सन्तानों को ज्ञान-विवेक-विज्ञान सम्पन्न बना सकते हैं, तद्अनुरूप संभाषण, अपेक्षानुरूप प्रमाण निर्देश सम्पन्न होना स्वभाविक है।
  2. 5. संबंधों का संबोधन, शिष्टता का दिशा निर्देशन संबोधन के साथ प्रयोजन भाव-भंगिमा, मुद्रा, अंगहार विधि से सन्तानों को निर्देशित करना हर अभिभावकों, पड़ोसी बन्धु, मित्रजनों का कर्त्तव्य-दायित्व होता है।
  3. 6. शिशुकालीन शिक्षा, शिक्षा-संस्कार के दायी अभिभावक होंगे। जीते हुए के आधार पर स्वीकृति, जीने के आधार पर शिक्षा संस्कार सार्थक होता है।
  4. 7. कौमार्य काल में ग्रामवासी, शिक्षा संस्था व अभिभावकों का संयुक्त रूप में जीने के आधार पर सफल बनाने का कर्त्तव्य-दायित्व रहेगा।
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