- 8. युवावस्था में मानवीय शिक्षा-संस्कार को विद्यार्थियों में, से, के लिये आचरण सहित प्रमाण रूप देना अनुभव प्रमाण सम्पन्न अध्यापकों में अनिवार्य रहेगा।
- 9. हर मानव सन्तान युवकों के फलन के रूप में अनुभव प्रमाण सम्पन्नता फलित होना ही मानवीय शिक्षा-संस्कार की सफलता है। इसका सत्यापन अभिभावक, विद्यार्थी करेंगे। अध्यापक दृष्टा पद में वैभव सम्पन्न होगा।
- 10. हर नर-नारी का मानवीय शिक्षा संस्कार सम्पन्न रहना ग्राम, मोहल्ला, देश, धरती में मानव का वैभव है।
- 11. जागृत मानव परंपरा में सम्पूर्ण मानव का अपने में सामाजिक अखण्डता और सार्वभौम व्यवस्था सूत्र व्याख्या में प्रमाण होना सहज है।
- 12. जागृत मानव परंपरा में ही समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व प्रमाण सहित नियम, नियंत्रण, संतुलन समेत सर्व सुख-शान्ति सहज विधि से जीना होता है। यही स्वराज्य है।
- 13. कम से कम सोलह-अठ्ठारह अधिक से अधिक बीस वर्ष की अवस्था में श्रम साध्य कार्यों को करने का दायित्व-कर्त्तव्य होना आवश्यक है।
- 14. प्राकृतिक ऐश्वर्य पर उपयोगिता मूल्य के अर्थ में श्रम नियोजन फलस्वरुप समृद्धि सार्थक होना पाया जाता है।
- 15. श्रम कार्य हर नर-नारी में, से, के लिये स्वस्थता, समृद्धि, सेवा के लिए आवश्यक है।
- 16. खेल,व्यायाम एवं श्रम स्वस्थ रहने का उपाय है। आवश्यकता व समय के अनुसार श्रम नियोजन हर ग्राम सभा, परिवार समूह सभा के निश्चित सामूहिक कार्य और परिवार से स्वीकृत होना भी रहेगा।
- 17. श्रम नियोजन हर मानव में, से, के लिये आवश्यक है।
- 18. श्रम नियोजन पूर्वक उपयोगिता व कला मूल्य ही प्रमाणित होता है। स्वास्थ्य संतुलन के लिए भी श्रम, समय नियोजन होता है।
- 19. सम्पूर्ण उपयोगितायें सामान्य व महत्वाकाँक्षा संबंधी उपलब्धि होगी।
- 20. हर नर-नारी युवा काल से प्रौढ़ावस्था के फलन तक श्रम नियोजन योग्य होते हैं। श्रम करने की प्रवृत्ति जागृति पूर्वक सफल विधिवत् होता है।
- 21. शरीर की सभी अवस्थायें सदा दृष्टव्य है।
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