1. 3.13 समझदारी सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व दर्शन ज्ञान, जीवन ज्ञान ज्ञाता के रूप में एवम् मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान सार्वभौम व्यवस्था के अर्थ में होना-रहना ही जागृति सहज प्रमाण है।
  2. 3.14 हर मानव में, से, के लिए व्यवस्था में भागीदारी का प्रमाण आचरण ही है।
  3. 3.15 मानवीयता पूर्ण आचरण ही हर मानव इकाई का वर्तमान है।
  4. 3.16 वर्तमान होने का प्रमाण ही आचरण सहित होना।
  5. 3.17 जागृति सर्व मानव में, से, के लिए स्वीकृत अथवा स्वीकारने योग्य आवश्यकता है।
  6. 3.18 स्वीकृति आवश्यकता में, से, के लिए प्रवर्तनशीलता हर मानव में स्पष्ट है।
  7. 3.19 परंपरा जागृत रहने के आधार पर ही मानव पीढ़ी से पीढ़ी प्रेरित व स्फूर्त रहना पाया जाता है।
  8. 3.20 मानव कुल में, से, के लिए जागृति अर्थात् समझदारी अक्षुण्ण सतत् स्त्रोत परंपरा के रूप में सर्व सुलभ होता है।
  9. 3.21 जागृत परंपरा में ही मानवीय शिक्षा संस्कार, मानवीय आचरण संहिता रूपी संविधान, मानवीयता पूर्ण परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था सहित सहअस्तित्व में अनुभव मूलक व्यवहार व प्रयोग, उत्पादन कार्य, विनिमय कार्य, स्वास्थ्य-संयम कार्य, न्याय-सुरक्षा कार्य, मानवीय शिक्षा-संस्कार कार्य सहज प्रमाण सम्पन्नता का बोध सहित स्वयं में विश्वास पूर्वक श्रेष्ठता का सम्मान सम्पन्न होना है।
  10. 3.22 जागृत परंपरा में ही जीवन ज्ञान, सहअस्तित्व दर्शन ज्ञान, मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान स्वीकृत रहता है और स्वीकार योग्य शिक्षा संस्कार प्रणाली पद्धति नीति स्पष्ट रहता है।
  11. 3.23 जीवन का अध्ययन क्यों और कैसे के साथ होता है। मानव सहज उद्देश्य पूर्ति प्रक्रिया प्रणाली पद्धति का स्पष्ट बोध और अनुभव होता है। फलत: प्रमाण परंपरा होना सहज है।
  12. 3.24 जागृत जीवन ही दृष्टा, कर्ता, भोक्ता पद से समाधान संपन्न है।
  13. 3.25 सहजता से जीवन जागृत होने का उपाय सार्वभौम व्यवस्था सर्व शुभ के अर्थ में सोच-विचार, निर्णय, समझ एवं कार्य-व्यवहार परंपरा ही है।
  14. 3.26 जागृति में, से, के लिए अस्तित्वमूलक मानव केन्द्रित चिंतन ही वाङ्गमय के रूप में मध्यस्थ दर्शन सहअस्तित्ववाद है।
  15. 3.27 सहअस्तित्व रूपी परम सत्य अनुभव, प्रमाण, बोध, संकल्प, साक्षात्कार, चित्रण, न्याय-धर्म-सत्यात्मक तुलन, विश्लेषण सहज आस्वादन पूर्वक चयन क्रियाकलाप ही जागृति पूर्ण जीवन मानसिकता प्रमाण है।
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