1. 4.10 श्रेष्ठता सहज सम्मान व प्रयोजन मूल्यांकन परस्परता में तृप्ति, पूरकता व उपयोगिता के अर्थ में है।
  2. 4.11 प्रतिभा का प्रयोजन समाधान, स्वायत्तता के अर्थ में, स्वायत्तता का प्रयोजन जागृत परंपरा में समझ, कार्य-व्यवहार, समझ में निपुणता, कुशलता, पांडित्य शिक्षा-संस्कार परंपरा में से जो प्राप्त रहता है उसे अन्य को समझाने, सिखाने, कराने में विश्वास से है।
  3. 4.12 व्यवसाय में स्वावलंबन का प्रयोजन परिवारगत आवश्यकता से अधिक उत्पादन और समृद्धि का प्रमाण है।
  4. 4.13 व्यवहार में सामाजिक होने का प्रयोजन अखण्ड समाज व सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी है।
  5. 4.14 अखण्ड समाज व सामाजिकता का प्रयोजन, समाधान, समृद्धि, अभयता, सहअस्तित्व सहज प्रमाण परंपरा सर्वसुलभ होना रहना ही है।
  6. 4.15 सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी का प्रयोजन समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व सहज प्रमाण है।
  7. 4.16 समाधान सहज प्रयोजन सुख है।
  8. 4.17 समाधान, समृद्धि सहज प्रयोजन सुख, शान्ति है।
  9. 4.18 समाधान, समृद्धि, अभय सहज प्रयोजन सुख, शान्ति, संतोष है।
  10. 4.19 समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व सहज प्रयोजन सुख, शान्ति, संतोष, आनंद है।
  11. 4.20 आनंद सहज प्रयोजन सहअस्तित्व में, से, के लिए अनुभव सहज प्रमाण पूर्ण वैभव है।
  12. 4.21 संतोष का प्रयोजन अनुभव सहज प्रमाण बोध और अभिव्यक्ति होने का संकल्प मन:स्वस्थता सहज प्रमाण है।
  13. 4.22 शांति का प्रयोजन अनुभव सहज प्रमाण बोध, संकल्प का साक्षात्कार-चित्रण अभिव्यक्ति सम्प्रेषणा प्रमाण है।
  14. 4.23 सुख का प्रयोजन अनुभव सहज प्रमाण बोध, संकल्प, साक्षात्कार, चित्रण व तुलन, विश्लेषण अभिव्यक्ति, सम्प्रेषणा और प्रकाशन है।
  15. 4.24 आस्वादन का प्रयोजन अनुभव सहज प्रमाण, बोध, संकल्प, साक्षात्कार, तुलन, विश्लेषणपूर्वक निश्चित मूल्यों में तादात्म्यता, तदाकार, तद्रूरूप विधि से मूल्यों का आस्वादनपूर्वक संबंधों का चयन, निर्वाह रूप में प्रमाण अभिव्यक्ति, सम्प्रेषणा, प्रकाशन है।
  16. 4.25 संवेदनाओं का प्रयोजन संज्ञानीयता में से नियंत्रित रहना है।
  17. 4.26 संज्ञानीयता का प्रयोजन जागृति सहज प्रमाण है।
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