- 3.56 मानव ही जागृति सहज प्रमाणों का धारक वाहक है।
- 3.57 मानव व देव मानव क्रियापूर्णता सहज प्रमाण है। दिव्य मानव आचरणपूर्णता का प्रमाण है।
- 3.58 मानवीयता पूर्ण मानव ही समझे हुए को समझाने, सीखे हुए को सिखाने, किए हुए को कराने में प्रमाणित रहता है। यह जागृति का साक्ष्य है।
- 3.59 समझे हुए को समझाने में, से, के लिए जागृति सहज प्रमाण समाधान के रूप में प्रमाणित होता है। यही मन:स्वस्थता का वर्तमान है। यही मन:स्वस्थता है।
- 3.60 सीखा हुआ को सिखाने, किया हुआ को कराने में समृद्धि के लिए सम्पन्न होने वाला कर्माभ्यास सहज स्वीकार होता है। यही मनाकार को साकार करने का प्रमाण है।
12.4..सार्थकता, प्रयोजन, नियति
सार्थकता : सहअस्तित्व में अखण्डता, सार्वभौमता सहज सूत्र व्याख्या ही अभ्युदय सहज परंपरा
प्रयोजन : उपयोगिता, पूरकता
नियति : सहअस्तित्व सहज प्रकटन वर्तमान
- 4.1 विद्यार्थियों में सफलता सार्थकता ज्ञान, विवेक, विज्ञान सम्पन्नता के लिए जिज्ञासा सहित निष्ठा प्रमाण परंपरा से है।
- 4.2 सेवक (सहयोगी) की सार्थकता कर्त्तव्य निर्वाह से है।
- 4.3 स्वामी (साथी) की सार्थकता दायित्व निर्वाह करने में से है।
- 4.4 उत्पादन में सार्थकता सामान्य आकाँक्षा व महत्वाकाँक्षा संबंधी वस्तुओं से समृद्ध होने के लिए प्रयुक्त कुशलता, निपुणता, पाण्डित्य से है।
- 4.5 न्याय सुरक्षा कार्य की सार्थकता उभय अथवा परस्पर तृप्ति के अर्थ में है।
- 4.6 स्वास्थ्य संयम कार्य की सार्थकता, जागृति को अभिव्यक्त करने के अर्थ में है।
- 4.7 समझदारी की सार्थकता सर्वतोमुखी समाधान सहज प्रवृत्तियों के रूप में कार्य-व्यवहार के रूप में है।
- 4.8 ईमानदारी का प्रयोजन नियम, नियंत्रण, संतुलन, न्याय, समाधान, सत्य में विश्वास व इसमें निरंतरता सहज प्रमाण है।
- 4.9 स्वयं में विश्वास का प्रयोजन जागृति सहज अक्षुण्णता (निरंतरता) में है।