स्पष्टीकरण – रासायनिक भौतिक क्रियाकलाप और मानवेत्तर जीव संसार नियम, नियंत्रण, संतुलन पूर्वक ‘त्व’ सहित व्यवस्था, समग्र व्यवस्था में पूरकता-उपयोगिता विधि से भागीदारी करता हुआ स्पष्ट है, जिसकी गवाही तीनों अवस्था में है। तीनों अवस्थायें सहअस्तित्व में वैभवित होने के उपरान्त ही मानव शरीर रचना सहित जीवन के संयुक्त रूप में मानव का प्रकटन इस धरती पर हुआ है। आज उक्त तीनों अवस्थायें पूरक विधि से संतुलित रहते हुए प्रवर्तनशील है। यही मानव व मानवत्व सहित अखण्ड समाज व्यवस्था व समग्र व्यवस्था में भागीदारी सहज वर्तमान होना, राष्ट्रीयता अर्थात् धरती वैभवित रहने का सूत्र व्याख्या व स्वरूप में वर्तमान होना आवश्यक है। भौतिक-रासायनिक ईकाइयाँ और सभी प्रकार के जीव अपने-अपने ‘त्व’ सहित व्यवस्था के रूप में वर्तमान है। ‘स्व’ होने के रूप में ‘त्व’ रहने (प्रमाणित) के रूप में वर्तमान आचरण रूप में प्रमाण और नियम सहित वर्तमान है।
3.6 अनुभव
- 1) अनुक्रम सहज अभिव्यक्ति, सम्प्रेषणा, प्रकाशन सहअस्तित्व में, से, के लिए प्रमाण वर्तमान।
- 2) सहअस्तित्व में अनुक्रम सहज विकास क्रम, विकास, जागृति क्रम, जागृति सहज प्रमाण परंपरा एवं निरंतरता की स्वीकृति।
- 3) अनुक्रम विधि में तद्रूप क्रिया, तदाकार प्रमाण ही अभिव्यक्ति सम्प्रेषणा प्रकाशन।
तदाकार = सहअस्तित्व में अनुभव प्रमाण स्वरूप में मानव स्वयं प्रमाणित होना जागृति है।
तद्रूप = ज्ञान अनुभव सम्पन्नता ही दृष्टा पद है और अन्य को बोध करने के रूप में प्रमाण।
3.7 अनुक्रम
- 1) सहअस्तित्व में, से, के लिए क्रम, प्रमाण क्रिया।
- 2) विकास क्रम, विकास, जागृति क्रम, जागृति और सहअस्तित्व सम्पूर्ण स्थिति, गति और क्रिया है। यही अनुक्रम व अनुभव है।
स्पष्टीकरण - हर मानव (हर नर-नारी) सहअस्तित्व में, से, के लिए अनुभव पूर्वक प्रमाण है। इसलिए हर मानव में सहअस्तित्व में अनुभव प्रमाण सहज एक रूपता का होना अनुक्रम है। यही प्रमाणिकता, प्रमाण है। सहअस्तित्व में एकाकारता ही अनुभव सहज बोध प्रमाण व संकल्प वर्तमान है।
सहअस्तित्व सहज अनुक्रम से परस्परता पूर्वक पूरक होने की स्वीकृति ही चित्त-वृत्ति में न्याय साक्षात्कार है। यही चित्रण, तुलन, विश्लेषण सहज सूत्र है। यही आस्वादन-चयन पूर्वक कार्य-व्यवहार व व्यवस्था में प्रमाण है। जिसका दृष्टा अथवा जानने, मानने, पहचान सहित निर्वाह करने वाला मानव ही है। मानव अपने