में शरीर एवं जीवन सहित संयुक्त रूप में है। चारों अवस्था सहज परस्परता में मानव जागृत होने का प्रमाण ही मानवत्व सहित व्यवस्था, समग्र व्यवस्था में भागीदारी ही राष्ट्रीयता है अर्थात् चारों अवस्था में परस्पर पूरकता उपयोगिता सहज प्रमाण वर्तमान ही राष्ट्रीयता है।
3.8 राष्ट्रीय चरित्र
धरती अपने में अखण्ड व धरती पर मानव जाति अखण्ड समाज रूप में मानव का उद्देश्य सुख रूप में मानव संस्कृति-सभ्यता, अखण्ड समाज में सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी जागृति सहज प्रमाण हो यह हर मानव में प्रमाणित होना ही अखण्ड मानव समाज होने के अर्थ में परंपरा प्रमाण है।
स्पष्टीकरण - मूल्य, चरित्र, नैतिकता के संयुक्त रूप में मानव जागृत होने का प्रमाण मानवीयता पूर्ण आचरण है,जिसमें स्वधन, स्वनारी-स्वपुरुष, दयापूर्ण कार्य व्यवहार, विचार व्यवस्था है। राष्ट्रीयता अखण्ड समाज के अर्थ में, राज्य परिवार मूलक स्वराज्य वैभव के रूप में सार्वभौम है। मानव में, से, के लिए मूल्य, चरित्र व नैतिकता पूर्वक संपूर्ण मूल्य स्पष्ट होता है। जब मौलिक रूप में मानव आचरण में स्पष्ट होता है तब मानवीय मूल्य, चरित्र, नैतिकता सहज रूप में पहचान होता है और तब नैतिकता, चरित्र व मूल्य प्रवृत्तियाँ स्पष्ट होना पाया जाता है।
3.9 अखण्ड राष्ट्र व्यवस्था
परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था व व्यवस्था में भागीदारी करना, कराना, करने के लिए सहमत होना।
3.10 संविधान
- 1) क्रियापूर्णता, आचरणपूर्णता के अर्थ में पारंगत प्रमाण परंपरा होना रहना।
- 2) प्रबुद्धता, संप्रभुता, प्रभुसत्ता सहज आचरण सूत्र व्याख्या परंपरा सहज रूप में होना रहना।
- 3) नियम-नियंत्रण-संतुलन, न्याय-धर्म-सत्य पूर्ण व्यवस्था सहज मानव परंपरा का होना रहना।
3.11 विधान
- 1) स्थिति क्रम में संविधान, गति क्रम में विधान, पूर्णता के अर्थ में आचरण।
- 2) ‘त्व’ सहित व्यवस्था, समग्र व्यवस्था में भागीदारी।
- 3) जागृति सहज प्रमाण सम्पन्न परंपरा।