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32) संप्रभुता

  1. 1. न्याय प्रदायी क्षमता, योग्यता, पात्रता व सत्यबोध सहित नियम, नियंत्रण, संतुलनपूर्वक किया गया कार्य-व्यवहार।
  2. 2. प्रबुद्धता सहित स्वयं स्फूर्त विधि पूर्वक परिवार व्यवस्था सहज रूप में अभिव्यक्ति, त्व सहित व्यवस्था समग्र व्यवस्था में भागीदार होने की सम्प्रेषणा, प्रकाशन।

33) समाधान

  1. 1. समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी, भागीदारी एवं फल-परिणाम समझदारी के अनुरूप होना।
  2. 2. समझदारी पूर्ण होना-प्रमाणित होना।
  3. 3. जानना, मानना, पहचानना व निर्वाह करने की क्रिया; क्यों और कैसे का उत्तर ही समस्याओं का निराकरण, विवेक सम्मत विज्ञान, विज्ञान सम्मत विवेकपूर्ण प्रणाली से संपन्न करने की क्रिया।

34) सहअस्तित्व

  1. 1. व्यापक वस्तु में संपृक्त जड़-चैतन्य प्रकृति।
  2. 2. परस्परता में निर्विरोध सामरस्यता समाधान।
  3. 3. अनंत इकाई रूपी प्रकृति में परस्परता और विकास क्रम, विकास, जागृति क्रम, जागृति पूर्ण परंपरा में ही अस्तित्व में परस्पर इकाईयों में उपयोगिता-पूरकता व उदात्तीकरण क्रिया और उसकी संतुलित परंपरा त्व सहित व्यवस्था, समग्र व्यवस्था में भागीदारी स्पष्ट है। यही सहअस्तित्व सहज अनन्त इकाईयों में गुणात्मक विकास, यथास्थिति, पूरकता, उपयोगिता, उदात्तीकरण सूत्र व्याख्या है।
  4. 4. सहअस्तित्व में ही अनंत इकाईयाँ परस्परता में विकास क्रम, विकास, पूरकता, उदात्तीकरण सूत्र और व्याख्या।

35) सत्य

  1. 1. सहअस्तित्व नित्य वर्तमान - सत्ता में सम्पृक्त जड़-चैतन्य प्रकृति सदा (नित्य) प्रमाण व प्रभाव वर्तमान।
  2. 2. सत्ता तीनों कालों में एक सा भासमान, विद्यमान एवं अनुभव गम्य है। यही साम्य ऊर्जा है।
  3. 3. मानव परंपरा में स्थिति सत्य, वस्तुस्थिति सत्य, वस्तुगत सत्य परंपरा रूप में नित्य वर्तमान होना अनुभवमूलक विधि से समझ में आता है।
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