के अनगिनत प्रश्न उलझते ही गए। इस प्रकार आर्थिक राजनीति धन के आधार पर ही मानव को दास बनाने के कार्य में व्यस्त हो गयी।
1.3 पूर्ववर्ती विधि
- 1) समर और दण्डनीति केन्द्रित शासन सर्वोपरि विधि माना गया और लोक रुचि का प्रोत्साहन कल्पना के आधार पर अनेक कार्यक्रम, विभिन्न राज राष्ट्रों में प्रस्तुत किए गये जिनकी कार्य शैलियों को साम, दाम, भेद, दण्ड के रूप में देखा गया। इन्हीं के सहारे पद, भोग लिप्सा एवं संग्रह-सुविधा सहित द्रोह-विद्रोह-शोषण-युद्ध के रूप में एक दूसरे के समक्ष परस्पर समुदायों ने अपने को प्रस्तुत किया। यह भी परिलक्षित हुआ कि प्रत्येक समुदाय अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए किसी भी अनीति को नीति की पोषाक पहना कर उपयोग करते आया। प्रत्येक शासन उन उन समुदाय की जनता को सुख-शांति और यथास्थिति को संरक्षण करने का आश्वासन देते हुए, विश्वास दिलाते हुए असफल हो चुके या होने वाले हैं। अर्थात् संपूर्ण राज्य, राष्ट्र अपनी सीमाओं में अथवा भूखण्ड में निवास करने वाले मानव समुदाय में अंतर्विरोध को तथा पड़ोसी देशों के साथ अंतर्विरोध को दूर करने में समर्थ नहीं रहे, आश्वासन अवश्य ही देते रहे।
- 2) शक्ति केन्द्रित शासन प्रणाली में दण्ड प्रक्रिया यंत्रणा, अर्थदण्ड और प्राणदण्ड के रूपों में होना देखा गया। सभी शासन प्रणालियों को सदा से ही भय और प्रलोभन के चक्र में घूमते हुए, पलते हुए देखा गया। विभिन्न समुदायों ने अपने अपने आचरणों को श्रेष्ठ माना; साथ ही वे अन्य लोगों के साथ अंतर्विरोध के साथ द्रोह, विद्रोह, शोषण और युद्ध से प्रभाावित रहे आए। फलस्वरूप मानव समुदाय की परस्परता में अंतर्विरोध रहा और प्रत्येक समुदाय में भी अंतर्विरोध प्रश्न चिन्ह बनकर खड़े रहा।
1.4 पूर्ववर्ती दर्शन
- 1) रहस्यमूलक ईश्वर केन्द्रित चिंतन ज्ञान बनाम आदर्शवाद। इसी के साथ आगम और निगम प्रबंध मानव परंपरा में स्थापित हुआ है।
- 2) अस्थिरता-अनिश्चयता मूलक तर्क सम्मत वस्तु केन्द्रित चिंतन ज्ञान बनाम विज्ञान। इसके समर्थन में तकनीकी एवं प्रौद्योगिकी प्रयोग विधियाँ स्पष्ट हो चुकी है।