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26) समाधान :-

    1. 1) समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी, भागीदारी सहज फल-परिणाम समझदारी के अनुरूप होना।
    2. 2) समझदारी पूर्ण होना।
    3. 3) जानना, मानना, पहचानना व निर्वाह करने की क्रिया।
    4. 4) क्यों और कैसे का उत्तर।
    5. 5) समस्याओं का निराकरण, विवेक सम्मत विज्ञान, विज्ञान सम्मत विवेकपूर्ण प्रणाली से संपन्न करने की क्रिया।

27) सत्य :-

    1. 1) सत्ता में सम्पृक्त प्रकृति रूप में सहअस्तित्व नित्य वर्तमान।
    2. 2) जो तीनों कालों में एक सा भासमान, विद्यमान एवं अनुभव गम्य है । यही सत्ता पारगामी, पारदर्शी है, यही परस्परता में अच्छी दूरी है ।
    3. 3) मानव परंपरा में स्थिति सत्य, वस्तु स्थिति सत्य, वस्तुगत सत्य रूप में सहअस्तित्व नित्य वर्तमान होना अनुभवमूलक विधि से समझ में आता है।
    4. 4) अस्तित्व, विकास, जीवन, जीवन-जागृति, रासायनिक-भौतिक रचना-विरचना के प्रति प्रामाणिकता का नित्य वर्तमान।
    5. 5) व्यापक वस्तु तीनों कालों में एक सा विद्यमान, भासमान और सुखप्रद रूप में स्थिति पूर्ण है। इसी में सम्पूर्ण रासायनिक, भौतिक क्रिया श्रम, गति, परिणाम परंपरा रूप में; निर्भ्रमता अथवा क्रियापूर्णता व आचरणपूर्णता में जागृति पूर्ण वैभव परंपरा रूप में वर्तमान होना है। मौलिकता है।

28) आचरण :-

    1. 1) स्वधन, स्वनारी-स्वपुरूष, दयापूर्ण कार्य-व्यवहार विन्यास
    2. 2) संबंधों की पहचान, मूल्यों का निर्वाह, मूल्यांकन, उभय तृप्ति, संतुलन
    3. 3) तन, मन, धन रूपी अर्थ की सुरक्षा और सदुपयोग
    4. 4) मूल्य, चरित्र, नैतिकता का अविभाज्य वर्तमान रूप में किया गया संपूर्ण कार्य, व्यवहार, विचार विन्यास
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