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विषयान्वेषी प्रवृत्ति दुष्कर्म में, ऐषणान्वेषी बुद्धि सत्कर्म में, सत्यान्वेषी बुद्धि योग अर्थात् जागृति में प्रसक्त, प्रयास एवं अभ्यासरत है ।

प्रत्येक मानव सहज प्रवृत्तन वातावरण, अध्ययन एवं संस्कार के योगफल में प्रत्यक्ष है।

प्रकृति एवं मानव कृत भेद से वातावरण प्रसिद्ध है ।

शिक्षा एवं व्यवस्था ही मानव कृत वातावरण का प्रत्यक्ष रूप है ।

मानव मात्र का संस्कार “अन्वेषण-त्रय” (विषयान्वेषण, ऐषणावेषण, सत्यान्वेषण) में स्पष्ट है ।

प्राकृतिक वातावरण की गणना प्रत्येक भूमि पर पाये जाने वाले शीत-उष्ण एवं वर्षा मान का संतुलन सहित मानवेत्तर तीनों अवस्थायें संबंधित रहता है ।

प्रत्येक भूमि पर जो प्राकृतिक वातावरण वर्तमान है वह उस भूमि में पाये जाने वाले खनिज एवं वनस्पति की राशि पर आधारित है। यह उस भूमि के विकास पर आधारित है ।

किसी भी भूमि पर ज्ञानावस्था के मानव की अवस्थिति घटना के पूर्व जीव व वनस्पतियों का समृद्ध होना अनिवार्य है । इसके पूर्व जल होना आवश्यक है ।

प्रत्येक भूमि पर किसी अधिकतम-न्यूनतम शीत, उष्ण और वर्षा मान की सीमा में ही जीव एवं मानव अपने जीवनी-क्रम और जीवन के कार्यक्रम को सम्पन्न करने में समर्थ हुए हैं।

प्राकृतिक वातावरण का संतुलन भी मानव सहज जागृति के लिए सहयोगी है, इसलिए-

संतुलन के लिये आधार आवश्यक है ।

अशेष प्रकृति का संतुलनाधार सत्ता ही है, जो पूर्ण है ।

प्रत्येक क्रिया के संतुलन का आधार नियम है, जो पूर्ण है ।

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