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जागृति की ओर गति हेतु नियंत्रणात्मक शब्द ही मंत्र है । लक्ष्य-प्राप्ति-योग्य-क्रम प्रक्रिया ही नियंत्रण है । शब्द में जो भाव (मूल्य) है वही उसका अर्थ है । सार्थक शब्दों का अर्थ ही जागृति की ओर गति है क्योंकि शब्द का अर्थ अस्तित्व में वस्तु है ।

भाव में जो उपयोगपूर्ण अनिवार्यता है वही उसका महत्व है । उपयोग पूर्ण अनिवार्यता में जो निश्चित दिशा है वही उसकी दृढ़ता है । यही सम्यक संकल्प है । सम्यक संकल्प में जो पूर्णता है वही अनुभव है जो क्रम से मन, वृत्ति, चित्त, बुद्धि और आत्मा में पाई जाने वाली सुसंस्कृत मौलिक क्रियायें है । भाव का तात्पर्य होने से है ।

क्रिया शक्ति कासा, इच्छा शक्ति आकूति तथा ज्ञान शक्ति मेधा नामक दिव्य बुद्धियाँ प्रत्यक्ष है जिनके उदय से ही मनोबल, बुद्धि-बल तथा आत्मबल प्रमाणित होता है ।

शक्ति-त्रय-जागरण (इच्छा-शक्ति, क्रिया-शक्ति तथा ज्ञान शक्ति जागरण) के बिना त्याग (भ्रममुक्ति) और प्रेम प्रमाणित नहीं होता ।

शरीरमय जीवन के लिये मानवेतर प्राणियों की तथा मनोमय, बुद्धिमय और आत्ममय जीवन के लिये मानव मात्र की सृष्टि है ।

भ्रममुक्ति (त्याग) एवं प्रेममय जीवन के बिना स्व-पर-कल्याण नहीं होता ।

कल्याण का तात्पर्य जागृति सहज निरन्तरता है ।

स्व-पर कल्याणकारी कर्म, उपासना एवं ज्ञान के बिना शान्ति पूर्ण नहीं होता ।

विरागमय जीवन में अभाव का अभाव हो जाता है । विराग ही आत्म-लक्ष्य कारक होता है ।

आत्म-लक्ष्य के प्रभाव से आत्म-बोध होता है ।

आत्म-बोध होने से आत्म-दीपन होता है ।

आत्म-दीपन होने से आत्म-विश्वास होता है ।

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