आत्म-विश्वास होने से अज्ञान का क्षय होता है ।
अज्ञान का क्षय होने से आत्म-प्रतिष्ठा होती है ।
आत्म-प्रतिष्ठा होने से पर-वैराग्य होता है ।
पर-वैराग्य होने से साम्राज्य सिद्धि होती है ।
साम्राज्य सिद्धि से परम ऐश्वर्य एवं पूर्ण तृप्ति होती है ।
ऐश्वर्य प्राप्ति से सहजावृत्ति होती है ।
सहजावृत्ति से भ्रम-मुक्ति का अनुभव होता है ।
भ्रम-मुक्ति का अनुभव ही मानव के लिये चरम पुरूषार्थ है ।
यही पूर्ण जागृति और दृष्टा पद प्रतिष्ठा है ।
“नित्य शुभ हो, सर्व शुभ हो”