उक्त प्रकार से प्रत्येक परमाणु अंश भी ऊर्जा सम्पन्न होने के फलस्वरूप एक दूसरे को पहचानना स्वाभाविक होता है, इस पहचानने का प्रयोजन संयुक्त रूप में आचरण करना, इसे एक शाश्वत नियम के रूप में समझा गया । इससे यह भी सूत्र निकलता है कि ऐसे पहचानने के आधार पर ही गठन-संगठन होना और गठन-संगठन का व्यवस्था के अर्थ में प्रमाणित होना, नित्य वर्तमान है । इस प्रकार व्यापक वस्तु में ही संपूर्ण एक-एक वस्तुएँ अविभाज्य होना और इसे सहअस्तित्व के रूप में समझ पाना सुलभ हो गया है । इस क्रम में सहअस्तित्व नित्य प्रभावित होना, हम मानव को स्वीकार होता है ।
सहअस्तित्व ही मूल सूत्र और व्यवस्था का आधार हुआ । हर स्थिति गति के मूल में सहअस्तित्व सुस्पष्ट है । इस प्रकार सहअस्तित्व ही विविध कार्य (क्रिया), उन-उन के आचरण का आधार होना सुस्पष्ट हुआ ।
परमाणुओं में कार्यरत अंशों के संख्या भेद होने से ही आचरण भेद होना पाया गया । ऐसे आचरण भेद के आधार पर ही परमाणु की प्रजाति और प्रजातियों की संख्या का निर्धारण करने का मानव ने प्रयास किया । इस धरती पर 108 प्रजातियों के परमाणु होने का दावा मानव अभी तक कर चुके हैं और प्रजाति के परमाणु को खोज करने की आशा बनाये हुए हैं ।
परमाणु को इस प्रकार समझने पर व्यवस्था केन्द्रित मानसिकता में हम मानव स्पष्ट हो जाते हैं । फलस्वरूप, मानव अपने में सहज व्यवस्था को पहचानने को तत्पर होना सहज रहा । इस क्रम में मानवीयतापूर्ण आचरण को समझना मानव के लिए सहज हो गया । इससे मूल्य, चरित्र, नैतिकता का संयुक्त अभिव्यक्ति, संप्रेषणा, प्रकाशन मानव परंपरा में, से, के लिए व्यवस्था का आधार होना पाया जाता है ।
इसी तथ्यवश पशु-संसार, वनस्पति-संसार और खनिज संसार - ठोस, तरल, विरल रूप में जितने भी प्रजाति गणित है, सभी के मूल में परमाणु ही है तथा जीवन भी परमाणु है । हर प्रजाति का परमाणु निश्चित आचरण करता है । इसलिए मानव भी (जो जीवन और शरीर का संयुक्त रूप है) निश्चित आचरणपूर्वक व्यवस्था में जीना चाहता है । परमाणु संरचना की महिमा आचरण में ही स्पष्ट होना और आचरण अपने में क्रिया के रूप में होना सहज रहा ।
परमाणु रचना के संदर्भ में यह भी स्पष्ट होता है कि परमाणु अंश एक दूसरे के सहअस्तित्व में ही प्रमाणित होते हैं । असीम अवकाश (व्यापक) में अलग रहने वाला परमाणु अंश व्यवस्था रूपी