समाधि में अज्ञात के ज्ञात होने का आश्वासन मिला। शास्त्रों के समर्थन के आधार पर साधना, समाधि, संयम कार्य संपन्न करने की स्वीकृति हुई। मैंने साधना, समाधि, संयम की स्थिति में संपूर्ण अस्तित्व सहअस्तित्व होने, रहने के रूप में अध्ययन, अनुभव विधि से पूर्ण समझ को प्राप्त किया जिसके फलस्वरूप मध्यस्थ दर्शन सहअस्तित्ववाद वाङ्गमय के रूप में विकल्प प्रकट हुआ।
5. आदर्शवादी शास्त्रों एवं रहस्य मूलक ईश्वर केन्द्रित चिंतन ज्ञान तथा परंपरा के अनुसार - ज्ञान अव्यक्त अनिर्वचनीय।
मध्यस्थ दर्शन के अनुसार - ज्ञान व्यक्त वचनीय अध्ययन विधि से बोधगम्य, व्यवहार विधि से प्रमाण सर्व सुलभ होने के रूप में स्पष्ट हुआ।
6. अस्थिरता, अनिश्चियता मूलक भौतिकवाद के अनुसार वस्तु केन्द्रित विचार में विज्ञान को ज्ञान माना जिसमें नियमों को मानव निर्मित करने की बात कही गयी है। इसके विकल्प में सहअस्तित्व रुपी अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिंतन ज्ञान के अनुसार अस्तित्व स्थिर, विकास और जागृति निश्चित संपूर्ण नियम प्राकृतिक होना, रहना प्रतिपादित है।
7. अस्तित्व केवल भौतिक रासायनिक न होकर भौतिक रासायनिक एवं जीवन वस्तुएं व्यापक वस्तु में अविभाज्य वर्तमान है यही “मध्यस्थ दर्शन सहअस्तित्ववाद” शास्त्र सूत्र है।
सत्यापन
8. मैंने जहाँ से शरीर यात्रा शुरू किया वहाँ मेरे पूर्वज वेदमूर्ति कहलाते रहे। घर-गाँव में वेद व वेद विचार संबंधित वेदान्त, उपनिषद तथा दर्शन ही भाषा ध्वनि-धुन के रूप में सुनने में आते रहे। परिवार परंपरा में वेदसम्मत उपासना, आराधना, अर्चना, स्तवन कार्य संपन्न होता रहा।
9. हमारे परिवार परंपरा में शीर्ष कोटि के विद्वान सेवाभावी तथा श्रमशील व्यवहाराभ्यास एवं कर्माभ्यास सहज रहा जिसमें से श्रमशीलता एवं सेवा प्रवृत्तियाँ मुझको स्वीकार हुआ। विद्वता पक्ष में प्रश्नचिन्ह रहे।
10. प्रथम प्रश्न उभरा कि -
ब्रह्म सत्य से जगत व जीव का उत्पत्ति मिथ्या कैसे?