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अध्याय – 3

क्रिया समूह ही विराट् है ।

इकाईयाँ विकास के अंतरांतर वैविध्यता से रहित नहीं है ।

असंख्य विविधता का समूह ही विराट् है ।

विराट् ही प्रकृति है ।

ब्रह्म व्यापक और स्थिर है, अतः उसमें कोई तरंग,कम्पन, स्पंदन और गति नहीं है ।

“यह” पारगामी है । “यह” अपरिणामी है ।

“यह” आकार-प्रकारात्मक सीमा से बाधित नहीं है । अतः इसमें कोई संकल्प-विकल्प नहीं है ।

सत्ता में समाहित अनंत क्रियाएं गतिशील, स्पंदनशील, कंपनशील और तरंगित पाई जाती हैं, जिसके फलस्वरूप परिणाम-परिपाक-पूर्वक प्रकृति चार अवस्थाओं में प्रकट है ।

प्रत्येक क्रिया सीमित, सत्ता में सम्पृक्त है अतः ब्रह्म परिणामादि क्रिया का कारण नहीं है ।

क्रिया समूह ब्रह्म में ही संपृक्त है । यह निर्णय ज्ञानावस्था सहज इकाईयों में सहज है ।

ब्रह्म संकल्प-विकल्पादि क्रिया नहीं है ।

ब्रह्म क्रिया होने का वर्तमान में कोई पुष्टि या प्रमाण नहीं है । यह व्यापक रूप में होना पुष्टि प्रमाण उपलब्ध है ।

अनुभव वर्तमान में ही प्रतिष्ठित है । भूत और भविष्य केवल अनुमान में है । अनुमान साधार व निराधार के भेद से गण्य है । जो स्पष्टता तथा अस्पष्टता को प्रकट करता है ।

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