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अध्याय – 6

ज्ञानात्मा, जीवात्मा, जड़-प्रकृति, परमात्मा एवं उसके अनुभव चर्चा प्रसिद्ध है । यही जीव-जगत एवं ईश्वर सहज अध्ययन है । दृष्टा पद में अध्ययन करने वाला मानव ही है ।

क्रिया समूह ही प्रकृति है । व्यापक क्रिया शून्य है ।

व्यापक ज्ञान पूर्ण है ।

असंख्य स्थान में पदार्थ व्यूह की स्थिति श्रम, गति, परिणाम पूर्वक ह्रास विकास के भेद-प्रभेद से प्रत्यक्ष है ।

सत्ता में पाए जाने वाले विभिन्न स्थानगत पदार्थ व्यूह में से इस पृथ्वी पर प्रकृति चार अवस्थाओं में परिलक्षित है, जो पदार्थ, प्राण, जीव और ज्ञानावस्थाएं हैं ।

पदार्थावस्था के विकास का चरमोत्कर्ष ही प्राणावस्था, प्राणावस्था का अंतिम विकास ही चैतन्य जीवावस्था, चैतन्य जीवावस्था का उच्चतम विकास ही चैतन्य भ्रान्त ज्ञानावस्था, चैतन्य भ्रान्त ज्ञानावस्था का विकास ही भ्रांताभ्रांत ज्ञानावस्था, भ्रान्ताभ्रान्त ज्ञानावस्था का सर्वोच्च विकास ही निर्भ्रान्त देव ज्ञानावस्था एवं दिव्यावस्था है । सबको ज्ञान (सत्य) सर्वत्र प्राप्त है ।

ज्ञानात्मा का अंतिम विकास ब्रह्मानुभूति है । ज्ञान में ही ज्ञानात्मा का अनुभव पूर्ण है । यही चेतना त्रय के रूप में प्रकट होने से जागृति नाम है । इसमें संदिग्धता नहीं है ।

पूर्ण में अनुमान विलय होता है ।

अनुमान के बिना अनुभव के लिए प्रयासोदय नहीं है इसलिए दर्शन के लिए प्रकृति से अधिक विशालता नहीं है उसके दर्शन क्रम में स्वयं का अध्ययन स्पष्ट है । स्वयं की अध्ययन स्पष्टता ही ब्रह्मानुभूति योग्य क्षमता है जो प्रसिद्ध है ।

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