अध्याय – 9
मानवीयतापूर्ण जीवन में सतर्कता पूर्ण होता है । दिव्य मानवीयता पूर्ण जीवन में सजगता परिपूर्ण होता है ।
समाधानपूर्वक या समाधानगामी तर्क ही सतर्कता है ।
निर्भ्रमता ही सतर्कता एवं सजगता है । निर्भ्रमता ही जागृति है । विकासानुक्रम में श्रम, गति, परिणाम प्रसिद्ध है ।
गन्तव्य के लिये गति, विश्राम के लिये श्रम, अमरत्व के लिए परिणाम स्पष्ट है ।
गठन, क्रिया एवं आचरण पूर्णता पर्यन्त श्रम का अभाव नहीं है । रासायनिक सीमा से मुक्ति गठन पूर्णता से, अमानवीयता से मुक्ति क्रिया पूर्णता से, ऐषणाओं से मुक्ति आचरण पूर्णता से चरितार्थ होती है । आचरण पूर्णता ही जीवन सहज प्रतिष्ठा है ।
देवमानवीयता पूर्ण जीवन में क्रिया पूर्णता पर अधिकार तथा वित्तेषणा, पुत्रेषणा से मुक्ति एवं सजगता की प्रतीति पाई जाती है ।
अभ्युदय पूर्वक ही गंतव्य, आचरण में पूर्णता प्रत्यक्ष है । यही जीवनमुक्ति-सजगता-परमानंद तथा दिव्य मानवीयता है । गति की गुणात्मक संक्रमण क्रिया ही अभ्युदय है । यही सर्वतोमुखी समाधान एवं जागृति पूर्णता है ।
परिणाम ही क्रम से गठनपूर्णता, अमरत्व, अस्तित्व, चैतन्य, जीने की आशा एवं प्रवृत्तियों के रूप में प्रकट है ।
वस्तु स्थिति सत्य, वस्तुगत सत्य तथा स्थिति सत्य के प्रति संदिग्धता ही भ्रम है, जो जागृति में अपूर्णता है ।
परमाणु में गठनपूर्णता, क्रियापूर्णता एवं आचरण पूर्णता पाई जाती है ।