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समाधान हर मानव में स्वीकृत है। इसे और भी विधि से कहा जाय तो सर्वतोमुखी समाधान सर्वमानव में स्वीकृत है। मनुष्येत्तर प्रकृति में आचरण प्रमाणित है ही। इसका नीति सूत्र है - “अस्तित्व में प्रत्येक एक अपने ‘त्व’ सहित व्यवस्था में कार्यरत और समग्र व्यवस्था में भागीदारी संपन्न है।” इस क्रम में मिट्टी, पत्थर, मणि, धातु, परमाणु, अणु, अणु रचित संपूर्ण पिंडों, किसी पिण्ड की सतह में पाए जाने वाले वनस्पति संसार, जीव संसार, इसी सूत्र व्याख्या में प्रमाणित होते हैं। मानव में प्रमाणित होना शेष है। इसे अध्ययनगम्य कराने के लिए ‘समाधानात्मक भौतिकवाद’ है।

मानव में समाधान प्रमाणित होने की संभावना है। मानव तभी समझदार हो पाता है, जब अस्तित्व, जीवन और मानवीयता पूर्ण आचरण अच्छे से समझ में आ जाय। यह आएगा कहां से? मानव से ही, मानव के लिए सुलभ होना नित्य सहज है। इस विधि से यह प्रस्तुत हुआ है।

समाधान का तात्पर्य क्यों और कैसे के उत्तर के रूप में है। मानव व्यवहार में संपूर्ण समाधान, नियम, नियंत्रण, संतुलन, न्याय और धर्म (सार्वभौम व्यवस्था) के रूप में परम सत्य रूपी सहअस्तित्व ही होना पाया गया है। यह नित्य समीचीन है। समीचीनता का अर्थ सबको सर्वदा सुलभ एवं समीपस्थ होने से है। समीपस्थता, यह सहअस्तित्व विधि से प्रमाणित है । सहअस्तित्व एक दूसरे के साथ होने के अर्थ को प्रतिपादित करता है। यह व्यापक वस्तु में संपृक्त, अनंत एक-एक वस्तु की हैसियत से पता लगता है। इसे अध्ययन करने की संपूर्ण प्रक्रिया सहित यह ‘समाधानात्मक भौतिकवाद’ प्रस्तुत हुआ है।

दूसरी विधि से, अस्तित्व ही सहअस्तित्व रूप में वैभवित है। सहअस्तित्व का मूल आशय, व्यापक वस्तु में एक-एक रूपी अनंत वस्तुओं की अविभाज्यता ही है। हर एक वस्तु जड़-चैतन्य के रूप में प्रमाणित है। प्रत्येक मानव जड़-चैतन्य का संयुक्त साकार रूप है । इस वांङ्गमय में परमाणु विकसित होने, जीवन पद प्रतिष्ठा में वैभवित होने का अध्ययन है।

गर्भाशय में मनुष्य शरीर की रचना भी प्राणकोशाओं से रचित होना स्पष्ट हो चुकी है। फलस्वरूप जीवन सहज, जागृति पूर्वक, अस्तित्व समझ में आने, अस्तित्व, सहअस्तित्व, विकास, जागृति, रासायनिक, भौतिक रचना-विरचना की क्रमविधि सहज प्रयोजन इस वांङ्गमय से संपन्न होने का आशय है।

ए. नागराज

  • श्री भजनाश्रम, श्री नर्मदांचल

अमरकंटक, जिला-अनूपपुर (मध्यप्रदेश)

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