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अध्याय - 2

मानव स्वरूप का इतिहास

(1) सामुदायिक इतिहास

उक्त प्रकार से आदि मानव ने एक स्थान अथवा देश में शरीर यात्रा प्रांरभ किया, या एक से अधिक देश अथवा स्थान में आरंभ किया - यह प्रश्न मानव को सोचने के लिए बाध्य करता हैं। इसका सत्य सहज उत्तर है कि आदिकाल में एक परिवार ने दूसरे परिवार को नस्ल के आधार पर पहचाना। यही पहली और ऐतिहासिक भूल या घटना हुई। आज हमें यह ज्ञात है कि नस्ल का आधार भौगोलिक, नैसर्गिक परिस्थितियाँ है। रंग का आधार भी भौगोलिक, नैसर्गिक परिस्थितियाँ है। पूजा व प्रार्थनाएँ कल्पनाशीलता के आधार पर निर्मित हुई। साधना का आधार श्रेष्ठता की अपेक्षा निष्ठा पर रहा। धर्म कहलाने वाले सभी प्रक्रियाएँ सामुदायिक शासन नियंत्रण और आश्वासन पर निर्भर रहीं। इसके लिए आज यही सोचा जा सकता है कि मानव की जागृति मानव के संबंध में नस्ल तक ही रही है। इसका प्रकाशन लड़ाई के रूप में हुआ। अर्थात् एक परिवार दूसरे परिवार को नस्ल, रंग के आधार पर क्रूर जीव-जंतु मानकर लड़ लिया। फलस्वरुप नस्ल के आधार पर समुदाय चेतना अर्थात् अपना पराया वाली सीमाएँ बनती रही।

दूसरी बार भिन्न-भिन्न रंगों के मानव देखने को मिले। उसी के आधार पर एक दूसरे को मारकाट करने वाले मानकर झगड़़ा कर लिया। फलस्वरुप परिवारों में अथवा समुदायों में भिन्न-भिन्न रंग और नस्ल की दीवालें पनपती आई। इस प्रकार ये दोनों (रंग और नस्ल) मान्यताएँ परंपरा में कटुता, द्रोह, विद्रोह प्रवृति को पनपाती रही।

तीसरी बार पुन: मानव को पूजा, अर्चना, योग, साधना, उपासना के आधार पर पहचानने की कोशिश हुई। यह भी पूववर्ती दो प्रकार के भूलों जैसी ही हुई। मतभेद वाद-विवाद के आधार पर पहले जैसे ही द्रोह-विद्रोह होते रहे। चौथी बार पुन: वस्तु संग्रह, सुविधा और भोग के आधार पर एक दूसरे समुदायों को पहचानने की कोशिश हुई। इसमें द्रोह-विद्रोह के साथ शोषण भी प्रखरता से शामिल हो गया। युद्घ तो पहले से ही रहा। इस प्रकार मानव विविध समुदाय प्रेरणाओं से प्रेरित होकर ही एक दूसरे को नकारने-सकारने के तरीकों से समस्याओं को तौलता ही रहा। यह समुदाय चेतना का एक इतिहास है।

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