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अध्याय - 3

समाधानात्मक भौतिकवाद

परिभाषा :-

(क) समाधान :- संपूर्णता और पूर्णता के अर्थ में प्रमाणपूत अवधारणा सहित प्रमाण।

अवधारणा का तात्पर्य :- जान लिया, मान लिया तथा पहचान चुके हैं। यही अवधारणा है।
अस्तित्व सहज संपूर्णता का तात्पर्य सत्ता में संपृक्त प्रकृति से है और इकाई सहज संपूर्णता का तात्पर्य इकाई अपने वातावरण सहित संपूर्ण होने से है।

पूर्णता का तात्पर्य :- अस्तित्व में परमाणु के गठन पूर्णता (जीवन पद), क्रिया पूर्णता, आचरण पूर्णता और इन तीनों की निरंतरता है । इन्हीं के लिए आवश्यकीय विकास व जागृति के रूप में प्राप्त ज्ञान, दर्शन व आचरण है। यही पूर्णता अवधारणा का आधार और ध्रुव है। इसे सार्थक तथा चरितार्थ करने के लिए जीवन ज्ञान, अस्तित्व दर्शन ज्ञान तथा मानवीयतापूर्ण आचरण ज्ञान लक्ष्य है। इस प्रकार पूर्णता के अर्थ में अवधारणा का आधार और लक्ष्य स्पष्ट है।

(ख) पदार्थवस्था :- सहअस्तित्व सहज वस्तुओं में से प्रकृति की भौतिक और रासायनिक वस्तुओं को जानने, मानने, पहचानने और निर्वाह करने के क्रम में भाषा शैली सहित संप्रेषित करना। वस्तु बोध होने का तात्पर्य वास्तविकता जिन जिन में प्रकाशित है और वर्तमान है। जो जैसा है वह उसकी वास्तविकता है। इस प्रकार अस्तित्व में निम्नलिखित वस्तुएँ है -

1. व्यापक रूप में नित्य वर्तमान “सत्ता” एक अखण्ड वस्तु है क्योंकि इसकी वास्तविकता, पारदर्शीयता, पारगामीयता, व्यापकता दृष्टव्य है।

2. सत्ता में संपृक्त जड़ व चैतन्य प्रकृति, वस्तुओं के रूप में नित्य वर्तमान है।

3. सत्ता में संपृक्त जड़-चैतन्य प्रकृति में से जड़ प्रकृति, रासायनिक-भौतिक रचना-विरचना में कार्यरत नित्य वर्तमान है। जो पदार्थावस्था और प्राणावस्था के रूप में गण्य है। पदार्थावस्था का स्वरुप और कार्य विभिन्न प्रकार के परमाणु और उनसे बनी रचनाऐं हैं। प्राणावस्था का प्रधान स्वरुप और कार्य प्राणकोषा और ऐसी कोषाओं से रचित रचनाऐं हैं। प्राणावस्था सभी अन्न, वनस्पतियों, जीव शरीरों और मानव शरीरों के रूप में दृष्टव्य है।

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