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ऐसी कोई इकाई या अंश नहीं है जो ऊर्जा संपन्न न हो। इसी कारणवश प्रत्येक इकाई क्रियाशील है। यह क्रियाशील प्रत्येक इकाई में श्रम, गति और परिणाम के रूप में दिखाई देती है।

इकाईत्व + ऊर्जा संपन्नता = क्रियाशीलता

जड़ इकाई से तात्पर्य छ: ओर से सीमित पदार्थ पिंड की प्रकाशमानता + परावर्तन से है।

इकाई और ऊर्जा संपन्नता का वियोग कभी नहीं होता। इसी सत्यतावश क्रियाशीलता निरन्तर देखने को मिलती है। इसीलिये सत्ता में संपृक्त प्रकृति सत्ता में स्वाभाविक रूप से गर्भित होने के कारण, सत्ता में अनुभव पर्यन्त विकास के लिए नित्य प्रवर्तित है। क्योंकि सत्ता स्थिति पूर्ण है। प्रकृति पूर्ण में गर्भित हैं। इसीलिए पूर्णता के लिए प्रवर्तन होना अस्तित्व सहज सिद्घ हुआ।

क्रियाशीलता स्वयं सम, विषम एवं मध्यस्थ शक्तियों के रूप में गण्य होती है। सम, विषम शक्तियाँ परस्परता में आवेश के रूप में देखी जाती है। उसे सामान्य बनाना मध्यस्थ क्रिया का कार्य हैं। इसे हम छिपी हुई ऊर्जा के नाम से जानते हैं। इस प्रकार यह सिद्घ होता है कि सम, विषम शक्तियाँ कार्य ऊर्जा के रूप में मध्यस्थ शक्ति छिपी हुई ऊर्जा के रूप में प्रकृति में नित्य वर्तमान है।

स्वभाव गति प्रतिष्ठा ही इकाई की संपूर्णता व इकाई की निरंतरता है। आवेशित गति को अधिकतम आवेशित कर किसी प्रणाली के द्वारा स्वेच्छात्मक रूप में क्रिया कराना ही आज विज्ञान का आधार है। ऐसी घटना अर्थात् आवेशों पर आधारित होने की मानसिकता इसीलिए हुई कि मध्यस्थ क्रिया और उसकी महिमा को आज तक पहचाना नहीं गया। धन-ऋणात्मक आवेशों में ही सापेक्षता सिद्घ होती हैं। यही अधिक और कम का भी अर्थ है। अधिक और कम, दोनों पूर्ण नहीं होते और इसी कारण स्थिर नहीं होते। फलत: मध्यस्थ शक्ति ऋण एवं धन आवेशों (शक्तियों) को सामान्य बनाने के लिए सतत कार्य करती रहती है क्योंकि मध्यस्थ शक्ति (क्रिया) का लक्ष्य पूर्णता है। इसका साक्ष्य पूर्णता और उसकी निरन्तरता है। इसी कारण प्रत्येक इकाई (परमाणु) का वर्तमान पूर्ण होने के क्रम में ही व्यवस्था अथवा नियति क्रम स्पष्ट है। यही अस्तित्व में विकासक्रम और विकास का प्रकाशन है।

“विकास परमाणु में होता है।”

प्रत्येक परमाणु गठनपूर्वक परमाणु है । प्रत्येक गठन में एक से अधिक अंश होते हैं। प्रत्येक परमाणु अपने गतिपथ सहित इकाई है। ऐसा गतिपथ स्वयं गठन और गति के आकार को स्पष्ट करता है। प्रत्येक परमाणु में तब तक प्रस्थापन और विस्थापन होता रहता है जब तक गठनपूर्णता न हो जाये। क्योंकि प्रत्येक परमाणु का क्रिया के रूप में होना प्रत्येक क्रिया में श्रम, गति, परिणाम अविभाज्य वर्तमान होता हैं। परिणाम

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