1. 5.13 अस्तित्व सहज वस्तु में, से, के लिए व्यापक वस्तु स्थिति पूर्ण एवं स्थिति पूर्ण सत्ता में सम्पृक्त प्रत्येक एक अपने ही वातावरण सहित सम्पूर्ण होना पाया जाता है।
  2. 5.14 सम्पूर्णता ही प्रत्येक एक भौतिक-रासायनिक इकाईयो में, से, के लिए यथास्थिति है।
  3. 5.15 प्रत्येक एक अपने यथास्थिति पूर्वक ही “त्व” सहित व्यवस्था, समग्र व्यवस्था में भागीदारी करते हैं।
  4. 5.16 सहअस्तित्व ही नित्य शाश्वत वर्तमान है।
  5. 5.17 सहअस्तित्व का अर्थ व्यापक वस्तु में ही सम्पूर्ण एक-एक वस्तु संपृक्त नित्य वर्तमान और अविभाज्य है।
  6. 5.18 हर मानव भी एक-एक रूप में गण्य है। मानवत्व सहित मानव ही अपने में वैभव है।
  7. 5.19 मानव ‘त्व’ सहित व्यवस्था होना, समग्र व्यवस्था में भागीदारी सहज स्पष्टता है और पदार्थावस्था, प्राणावस्था, जीवावस्था में नियम, नियंत्रण, संतुलन पूर्वक व्यवस्था स्पष्ट है।
  8. 5.20 व्यवस्था नियति सहज नित्य वैभव है। यह हर मानव में, से, के लिए समझ में आना आवश्यक है।
  9. 5.21 नियति सहजता का तात्पर्य नियम, नियंत्रण, संतुलन के अर्थ में मानवेत्तर प्रकृति की व्यवस्था और न्याय, धर्म (समाधान), सत्य सहज ही मानव ध्रुवस्थ है। ध्रुवस्थ का तात्पर्य निश्चित स्थिति-गति से है।
  10. 5.22 सहअस्तित्व में, से, के लिए नियति निश्चित वर्तमान है।
  11. 5.23 मानवेत्तर प्रकृति नियम, नियंत्रण, संतुलन, पूरकता-उपयोगिता विधि से ‘त्व’ सहित व्यवस्था है।
  12. 5.24 संबंधों की पहचान के आधार पर हर नर-नारी नियंत्रित होना पाया जाता है।
  13. 5.25 समझदारीपूर्वक ही नियम, नियंत्रण, संतुलन, न्याय, समाधान (धर्म), सत्य जागृत मानव परंपरा में, से, के लिए प्रमाण है।
  14. 5.26 सहअस्तित्व में प्रत्येक एक सभी ओर प्रकाशमान है। व्यापक वस्तु सभी एक-एक में प्राप्त है क्योंकि सभी अवस्था में सभी इकाईयाँ व्यापक सत्ता में सम्पृक्त हैं।
  15. 5.27 व्यापक वस्तु स्थितिपूर्ण है, क्योंकि जहाँ इकाईयाँ है और जहाँ इकाईयाँ नहीं है ऐसी उभय स्थिति में व्यापक वस्तु है। व्यापक वस्तु असीमित है और सभी एक-एक वस्तु का सीमित होना रहना स्पष्ट है।
  16. 5.28 व्यापक में जड़-चैतन्य प्रकृति सहज सम्पृक्तता ही प्रत्येक एक में ऊर्जा संपन्नता और क्रियाशीलता है। जीवन जागृति क्रिया सहज पहचान सहित आचरण है।
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