1. 14.38 जागृत मानव परंपरा में ही मानवत्व का पहचान, निर्वाह, मूल्यांकन, परस्पर तृप्ति, परस्परता में सन्तुष्टि फलस्वरूप वर्तमान में विश्वास (अभयता) स्पष्ट होता है। यह मानवत्व है।
  2. 14.39 जागृति पूर्ण मानव परंपरा में ही शिक्षा-संस्कार, संविधान, व्यवस्था, संस्कृति, सभ्यता सार्थक रूप में प्रमाण मानवत्व है।
  3. 14.40 सहअस्तित्व में अनुभव प्रमाण ही है यही मानवत्व है।
  4. 14.41 सहअस्तित्व में जीवन लक्ष्य, मानव लक्ष्य सार्थक होना जागृति है यह मानवत्व है।
  5. 14.42 जागृति सहज निर्धारित लक्ष्य सार्थक होने में, से, के लिए निर्धारित दिशाओं, आयामों का समझ विचार कार्य व्यवहार प्रमाणित होना मानवत्व है।
  6. 14.43 ज्ञान, विवेक, विज्ञान पूर्ण शिक्षा संस्कार परंपरा ही मानवत्व है।
  7. 14.44 धरती पर मानव इकाई की अखण्डता का प्रमाण, धरती का भाग विभाग होता नहीं, मानव धर्म अर्थात् सुखी होने के आधार पर राष्ट्र अखण्ड होने का प्रमाण मानवत्व है। अखण्ड राष्ट्र व्यवस्था दश सोपानीय होने का प्रमाण मानवत्व है।
  8. 14.45 मानव सुख धर्मी होने का प्रमाण मानवत्व है।
  9. 14.46 मानव शरीर रचना की विधि में असमानता, जीवन स्वरूप और जागृति के आधार पर समानता की समझ व प्रमाण मानवत्व है।
  10. 14.47 जागृत मानव परंपरा में सार्वभौमता, अक्षुण्णता, निरंतरता के अर्थ में है, यह वस्तु के रूप में सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व ही है यह समझ व्यवहार कार्य मानवत्व है।
  11. 14.48 प्रबुद्धता समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी, भागीदारी है। यह मानवत्व है।
  12. 14.49 संप्रभुता में सम्पूर्ण प्रबुद्धता को परंपरा के रूप में विधि और व्यवस्था सहज अर्थ में प्रमाणित करना मानवत्व है।
  13. 14.50 जागृत मानव परंपरा में प्रभुसत्ता प्रबुद्धता पूर्ण विधि सहज सार्वभौम व्यवस्था रूपी सत्ता ही अक्षुण्ण है। यह मानवत्व है।
  14. 14.51 मूलत: प्रबुद्धता का लोकव्यापीकरण ही मानवत्व है।
  15. 14.52 सर्व मानव का मानवेत्तर प्रकृति यथा पदार्थ, प्राण, जीव अवस्थाओं में स्थित वस्तुओं के साथ नियम, नियंत्रण, संतुलन को बनाये रखना मानवत्व है।
  16. 14.53 आवर्तनशीलता एवं ऋतु संतुलन नियम को बनाये रखना मानवत्व है।
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