1. 13.67 मानवत्व सर्व मानव में, से, के लिए समझ के रूप में स्वत्व, कार्य-व्यवहार में स्वतंत्रता, सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी अधिकार है।
  2. 13.68 मानवत्व रूपी स्वत्व के आधार पर ही स्वतंत्रता व अधिकार का प्रमाण होना सहज है।
  3. 13.69 मानवत्व सर्वशुभ रूप में दृष्टा, ज्ञाता, कर्ता पद का वैभव होना ही जागृत मानव परंपरा है।
  4. 13.70 प्रत्येक मानव में, से, के लिए मानवत्व ही वैभव है।
  5. 13.71 हर जागृत मानव सहज सम्पूर्ण कार्य-व्यवहार सर्वशुभ सूत्र की व्याख्या है।
  6. 13.72 सर्वशुभ ही मानव सहज परिभाषा मानवीयतावादी व्याख्या, मानवीयता पूर्ण आचरण संविधान सहअस्तित्वपूर्ण दृष्टिकोण से शिक्षा संस्कार सुलभ है।
  7. 13.73 मानवीय शिक्षा संस्कार ही जागृत परंपरा में, से, के लिए सार्थक सूत्र व्याख्या प्रक्रिया है।
  8. 13.74 मानवीयता मानव के लिए नित्य समीचीन है।
  9. 13.75 सर्व मानव में मन:स्वस्थता स्वयंस्फूर्त विधि से स्वयं व्यवस्था समग्र व्यवस्था में भागीदारी स्वयंस्फूर्त क्रम में सम्पन्न होता है।
  10. 13.76 मानव में, से, के लिए सहअस्तित्व सहज सम्पूर्ण समझ ही परिपूर्णता है।
  11. 13.77 मानवीयतापूर्ण आचरण व्यवस्था के रूप में प्रमाणित होता है। यही मानवत्व सहित व्यवस्था तथा समग्र व्यवस्था में भागीदारी की सूत्र व्याख्या है।
  12. 13.78 जीवन मर्यादा मानवत्व सहित परिवार व्यवस्था और समग्र व्यवस्था में भागीदारी है। मर्यादा का तात्पर्य जागृति, उसका प्रमाण ही मानवीयतापूर्ण आचरण है।
  13. 13.79 नियमित प्रवृत्ति व कार्य-व्यवहार, नैतिकता तन-मन-धन रूपी अर्थ का सदुपयोग और सुरक्षा ही है।
  14. 13.80 जागृत मानव सहज कार्य-व्यवहार आचरण ही प्रधानत: मानवीय आचरण संहिता रूपी संविधान का मूल सूत्र है जिसकी व्याख्या में सभी आयामों, कोणों, देश-दिशा का स्पष्ट होना ही सम्पूर्ण संविधान है।
  15. 13.81 मानवीयता ही मानवत्व है।
  16. 13.82 मानवीयता जागृति सहज प्रमाण परंपरा है।
  17. 13.83 जानना मानना संबंध में मूल्य निर्वाह

मानना जानना मूल्यांकन

पहचानना निर्वाह करना उभय तृप्ति संतुलन

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