1. 14.66 परिभाषा संगत होने का तात्पर्य मन:स्वस्थता सहज मानसिकता सहित मनाकार को साकार कर प्रयोजन सहज परिवार आवश्यकता से अधिक उत्पादन कार्य में प्रमाणित रहने से है। यह मानवत्व है।
  2. 14.67 व्यवस्था संगत होने का तात्पर्य परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था में भागीदारी सहित दश सोपानीय व्यवस्था में भागीदारी कृत, कारित, अनुमोदित प्रमाण से है। यह मानवत्व है।
  3. 14.68 लक्ष्य संगत होने का तात्पर्य समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व सहज आचरण पूर्वक प्रमाणित होने से है।
  4. 14.69 मानव ही बहुआयामी प्रवर्तनशील व प्रमाण होने के कारण ही अनुबंध पूर्णता के अर्थ में निबन्ध व प्रबन्ध कार्य सार्थक है। यह मानवत्व है।
  5. 14.70 संबंधो को जानना, मानना,पहचानना, निर्वाह करना मानवत्व है।
  6. 14.71 ज्ञान, विवेक, विज्ञान पूर्ण संबंधों में, से, के लिए जानने, मानने, पहचानने, निर्वाह करने के रूप में संकल्पित होना ही अनुबंध है। यह मानवत्व है।
  7. 14.72 संबंध नित्य वर्तमान, वर्तमान अस्तित्व, अस्तित्व सहअस्तित्व, सहअस्तित्व वैभव, वैभव यथा स्थिति गति, मानव परंपरा में स्थिति गति समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी, भागीदारी वस्तु व प्रयोजन यही संबंध ज्ञान-विवेक-विज्ञान सम्पन्नता है। यह मानवत्व है।


भूमि: स्वर्गताम् यातु, मनुष्यो यातु देवताम् ।

धर्मो सफलताम् यातु, नित्यम् यातु शुभोदयम् ॥

- ए. नागराज

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