- 3. मानव परंपरा में, से, के लिए जागृति सहज वैभव सर्वशुभ रूप में समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व प्रमाण परंपरा।
- 4. सर्व शुभ, नित्य शुभ सहज वैभव सार्वभौम व्यवस्था परंपरा में, से, के लिए है।
- 5. सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व सहज वैभव रूप में प्रमाण परंपरा है। यही इतिहास का आधार है।
इस धरती पर मानव पीढ़ी से पीढ़ी परंपरा में घटित प्रवृत्ति नियति क्रम का आंकलन सहित जागृति सहज परंपरा आवश्यक है।
जंगल युग से शिला युग
शिला युग से धातु युग
धातु युग से ग्राम-कबीला युग
ग्राम-कबीला युग से राज शासन एवं धर्म शासन युग
राज शासन एवं धर्म शासन युग से लोकतंत्र युग प्रधान रूप में। यह शक्ति केन्द्रित शासन युग रहा।
रहस्य मूलक आदर्शवाद में | अस्थिरता-अनिश्चयता मूलक भौतिकवाद में |
भक्ति विरक्ति का प्रेरणा, रहस्यमय स्वर्ग मोक्ष के रूप में आश्वासन इसका प्रमाण रिक्त रहा, रहस्यमय देव कृपा से स्वर्ग, रहस्यमय ईश कृपा, वेद कृपा, गुरु कृपा से मुक्ति का आश्वासन रहा। प्रेरणा विधि रहस्यमय रहा। | संग्रह सुविधा का प्रेरणा इसका तृप्ति बिन्दु नहीं मिलना प्रयोग क्रम में धरती बीमार होना रहा। |
राज युग से गणतंत्र विधि से जनप्रतिनिधियों का सहमति से शासन, सभी देश, राज, राष्ट्र के संविधान, व्यक्ति समुदाय चेतना से ग्रसित एवं शक्ति केन्द्रित शासन के रूप में है, जिसका विकल्प अस्तित्वमूलक मानव केन्द्रित चिंतन, ज्ञान, विवेक, विज्ञान रूप में मध्यस्थ दर्शन (सहअस्तित्ववाद) शास्त्र, अखण्डता सार्वभौमता के अर्थ में प्रस्तुत है। यह प्रस्तुति रहस्य, भ्रम, अपराध मुक्ति के अर्थ में है ।
6.5 (13) जागृत मानव परंपरा का सहज वैभव
- 1. मानव चेतना विधि से मानवत्व सहज परिवार व्यवस्था से व्यवस्था, समग्र व्यवस्था में भागीदारी से है।