व्याख्या = व्यवहार व व्यवस्था में प्रमाणित होने के अर्थ में स्पष्ट होना।
आख्यान = आवश्यकता-अनिवार्यता स्पष्ट होना।
संवाद = पूर्णता अर्थात् गठनपूर्णता, क्रियापूर्णता, आचरणपूर्णता के अर्थ में है एवं तर्क विधि से समाधान सुलभ होना है।
वाद = वास्तविकता पूर्वक समाधान सहज निष्कर्ष पूर्ण अध्ययन सुलभ रूप में प्रस्तुत करना।
विचार = विधिवत् प्रयोजन के अर्थ में विवेचना, विश्लेषण करना, स्पष्ट करना, स्पष्ट होना।
मानव लक्ष्य को प्रमाणित करना ही जागृत मानव परंपरा में विचार प्रयोजन है।
विवेचना = विधिवत् प्रयोजन व लक्ष्य आवश्यकता उपयोगिता-पुरकता सहज स्पष्टीकरण।
भाषा विधि प्रयोजन = भाषा सहज अर्थ में अस्तित्व में सहअस्तित्व, पद, अवस्था बोध होना।
पद | अवस्था | बोध |
प्राणपद | पदार्थावस्था | वस्तु-बोध |
भ्रांतिपद | प्राणावस्था | क्रिया-बोध |
देवपद | जीवावस्था | स्थिति-बोध |
दिव्यपद | ज्ञानावस्था | गति-बोध |
बोध = अध्ययनपूर्वक अनुभवगामी क्रम में बोध, अनुभव मूलक विधि से प्रमाण बोध, अनुभव प्रमाण बोध सहअस्तित्व सहज अनुभव प्रमाणों को व्यवहार व प्रयोगों में प्रमाणित करना ही ज्ञान-विवेक-विज्ञान है।
अनुभव = जानने, मानने, पहचानने, निर्वाह करने की संयुक्त क्रिया और जानने, मानने, पहचानने, निर्वाह पूर्वक कार्य-व्यवहार-व्यवस्था में भागीदारी प्रमाणित होने की क्रिया हैं।
6.5 (12) इतिहास
- 1. विकास क्रम, विकास, जागृति क्रम, जागृति सहज परंपरा।
- 2. सत्ता में सम्पृक्त प्रकृति सहज भौतिक, रासायनिक जीवन क्रियाकलाप।