1.0×

व्याख्या = व्यवहार व व्यवस्था में प्रमाणित होने के अर्थ में स्पष्ट होना।

आख्यान = आवश्यकता-अनिवार्यता स्पष्ट होना।

संवाद = पूर्णता अर्थात् गठनपूर्णता, क्रियापूर्णता, आचरणपूर्णता के अर्थ में है एवं तर्क विधि से समाधान सुलभ होना है।

वाद = वास्तविकता पूर्वक समाधान सहज निष्कर्ष पूर्ण अध्ययन सुलभ रूप में प्रस्तुत करना।

विचार = विधिवत् प्रयोजन के अर्थ में विवेचना, विश्लेषण करना, स्पष्ट करना, स्पष्ट होना।

मानव लक्ष्य को प्रमाणित करना ही जागृत मानव परंपरा में विचार प्रयोजन है।

विवेचना = विधिवत् प्रयोजन व लक्ष्य आवश्यकता उपयोगिता-पुरकता सहज स्पष्टीकरण।

भाषा विधि प्रयोजन = भाषा सहज अर्थ में अस्तित्व में सहअस्तित्व, पद, अवस्था बोध होना।

पद

अवस्था

बोध

प्राणपद

पदार्थावस्था

वस्तु-बोध

भ्रांतिपद

प्राणावस्था

क्रिया-बोध

देवपद

जीवावस्था

स्थिति-बोध

दिव्यपद

ज्ञानावस्था

गति-बोध
परिणाम-बोध
फल प्रयोजन-बोध
मानव में, से, के लिए जागृति-बोध

बोध = अध्ययनपूर्वक अनुभवगामी क्रम में बोध, अनुभव मूलक विधि से प्रमाण बोध, अनुभव प्रमाण बोध सहअस्तित्व सहज अनुभव प्रमाणों को व्यवहार व प्रयोगों में प्रमाणित करना ही ज्ञान-विवेक-विज्ञान है।

अनुभव = जानने, मानने, पहचानने, निर्वाह करने की संयुक्त क्रिया और जानने, मानने, पहचानने, निर्वाह पूर्वक कार्य-व्यवहार-व्यवस्था में भागीदारी प्रमाणित होने की क्रिया हैं।

6.5 (12) इतिहास

  1. 1. विकास क्रम, विकास, जागृति क्रम, जागृति सहज परंपरा।
  2. 2. सत्ता में सम्पृक्त प्रकृति सहज भौतिक, रासायनिक जीवन क्रियाकलाप।
Page 53 of 212
49 50 51 52 53 54 55 56 57