1.0×

6.6 (4) मानवेत्तर प्रकृति का संबंध निर्वाह मौलिक अधिकार है

  1. 1. धरती पर अन्न, वन, वनस्पतियों, वन्य प्राणियों और जीवों का संबंध एवं वन ही इनके आवास स्थली के रूप में धरती पर वर्तमान है। मानव सहज वैभव होने का आधार भी धरती है, इसलिए इसका संतुलन आवश्यक है। धरती अपने शून्याकर्षण स्थिति-गति स्वरूप में संतुलित होने के आधार पर ही प्राणावस्था के सम्पूर्ण प्रकार की वनस्पतियाँ, जीव-संसार और ज्ञानावस्था में मानव का होना पाया जाता है। इनमें संतुलन बनाये रखना जागृति है। यह विज्ञान विधा का महत्वपूर्ण दायित्व है।
  2. 2. हवा के साथ मानव का संबंध बना ही है। प्राण वायु अर्थात् मानव तथा जीव-संसार जिस प्रकार के हवा के कारण सांस ले पाते हैं , इसकी प्रचुरता-पवित्रता को बनाये रखना मानव कुल का कर्त्तव्य है।
  3. 3. पानी के साथ मानव संबंध सदा से बना ही रहता है। इस धरती पर पानी समृद्ध होने के उपरान्त ही प्राणावस्था, जीव अवस्था और ज्ञानावस्था में मानव सहज प्रकट होना पाया जाता है। अतएव पानी की प्रचुरता एवं पवित्रता को सुरक्षित बनाये रखना आवश्यक है।
  4. 4. जीव संसार की सुरक्षा व नियंत्रण, संतुलन मानव परंपरा के लिए अनिवार्य कर्त्तव्य है।

नियम-त्रय पालन मौलिक अधिकार है।

प्राकृतिक नियम

बौद्धिक नियम

सामाजिक नियम

6.6 (5) प्राकृतिक नियम

खनिज वनस्पति, जीव-संसार इसी धरती में संतुलित रहने के उपरान्त ही मानव का उदय व परंपरा प्रस्तुत है। मानव ज्ञानावस्था में होने के कारण इनमें संतुलन वैभव को बनाये रखना ही समाधान (सुख) है।

6.6 (6) बौद्धिक नियम

समृद्धि, स्नेह, समझदारी (समाधान), सरलता, वर्तमान में विश्वासवादी एव विश्वासकारी ज्ञान, विज्ञान, विवेक सम्मत मानसिकता विचार का प्रमाण।

6.6 (7) सामाजिक नियम

स्वधन, स्वनारी, स्वपुरुष, दयापूर्ण कार्य-व्यवहार का प्रमाण परंपरा।

Page 59 of 212
55 56 57 58 59 60 61 62 63