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7.2 (7) आचरण-व्यवहार-कार्य

मानवीयता पूर्ण आचरण ही सम्पूर्ण विधाओं में न्याय सहज स्रोत है।

जागृत मानव ही मानवीयता पूर्ण आचरण में, से, के लिए प्रमाण है।

परंपरा सहज परस्परता में हर नर-नारी प्रमाण होना पाया जाता है।

  • सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व दर्शन - ज्ञान (अनुभव)
  • चैतन्य इकाई रूपी जीवन - ज्ञान (अनुभव)
  • मानवीयता पूर्ण आचरण सहज - ज्ञान (अनुभव)

मानव लक्ष्य, जीवन मूल्य सहज विवेचना रूपी

विवेक

लक्ष्य को प्रमाणित करने तर्क संगत दिशा निश्चयन रूपी

विज्ञान सम्पन्नता सहित

जीवन मूल्य, मानव मूल्य, स्थापित मूल्य, शिष्ट मूल्य
मानव परम्परा

संबंधों सहित

वस्तु मूल्य को नियम-नियंत्रण-संतुलन विधि पूर्वक

संबंधों में प्रमाणित कायिक,

जीव, प्राण, पदार्थ वैभव को संतुलित बनाए रखते हुए स्थापित करना

वाचिक, मानसिक विधि से करना, कराना, करने के लिए सहमत होना है।

सम्पूर्ण तर्क नियम, नियंत्रण, संतुलन, न्याय, धर्म, समाधान, सत्य सहज अध्ययन, अनुभव, प्रमाण वर्तमान में, से, के लिए कारण, गुण, गणित विधि से भाषा प्रयोग।

7.2 (8) व्यवहार में न्याय

मानवीयता पूर्ण आचरण पूर्वक कार्य-व्यवहार में हर जागृत मानव प्रमाण है। हर जागृत मानव परस्पर संबंधों की पहचान सहित व्यवहार करता है।

  1. 1) संबंधों में पहचान व निर्वाह निरंतरता - न्याय है।
  2. 2) संबंधों में निहित मूल्य निर्वाह निरंतरता - न्याय है।
  3. 3) संबंधों में मूल्य सहज पहचान, निर्वाह निरंतरता सहित मूल्यांकन, - न्याय है।

परस्परता में मानवत्व सहज सिद्धांत स्वीकृति, अनुभूति, तृप्ति सहज निरंतरता - न्याय है।

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