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  1. 4. कृषि-पशुपालन कार्यरत हर परिवार अपने से उत्पादित वस्तुओं का श्रम नियोजन व उपयोगिता के आधार पर मूल्यांकन करना व विनिमय करना न्याय है।
  2. 5. जागृत मानव परिवार में ही स्वायत्तता, स्वतंत्रता, समाधान सहित आवश्यकता से अधिक उत्पादन रूप में स्वावलम्बन समृद्धि सहज रुप में प्रमाणित होना न्याय है।
  3. 6. कृषि-पशुपालन के साथ हस्त कला, ग्राम शिल्प, कुटीर उद्योग, ग्रामोद्योग ऊर्जा संतुलन मानवीयता पूर्ण कला साहित्य सर्जन-सम्प्रेषणा में अधिकार सम्पन्नता न्याय है।
  4. 7. समझदारी सहित कृषि-पशुपालन पूर्वक समाधान, समृद्धि का प्रमाण होना न्याय है।
  5. 8. कृषि-पशुपालन रत हर परिवार जन का निपुणता-कुशलता-पांडित्य सम्पन्न रहना न्याय है।
  6. 9. कृषि-पशुपालन रत हर परिवार परंपरा को मूल्यांकन में समानता को बनाये रखना न्याय है।
  7. 10. सामान्य व महत्वाकाँक्षी उत्पादन सेवा रत हर नर-नारी अपने श्रम मूल्य का मूल्यांकन करना न्याय है।
  8. 11. मूल्यांकन परिवार से परिवार समूह, परिवार समूह से ग्राम मोहल्ला, ग्राम मोहल्ला से विश्व परिवार तक समन्वय, संतुलन प्रमाण न्याय है।

उत्पादन कार्य में न्याय

  1. 1. सभी ग्राम परिवार में, से, के लिए आवश्यकता में, से, के लिए सामान्य आकाँक्षा संबंधी वस्तुओं को आवश्यकता से अधिक उत्पादन करना और औषधि संबंधी जड़ी बूटियों को उपजाना न्याय है।
  2. 2. उत्पादित वस्तुओं का मूल्यांकन ग्राम मोहल्ला-व्यापी समन्वित रूप में होना न्याय है।
  3. 3. परिवार में किया गया मूल्यांकन परिवार समूह में समन्वित होना न्याय है।
  4. 4. सभी समन्वित मूल्यांकन ग्राम परिवार सभा में समन्वित होना न्याय है।
  5. 5. समन्वित मूल्यांकन सम्पन्न हर ग्राम, ग्राम समूह सभा के साथ समन्वित होना न्याय है।
  6. 6. हर ग्राम समूह सभा मूल्यांकन विधा से समन्वित रहते हुए क्षेत्र सभा में समन्वित रहना न्याय है।
  7. 7. हर क्षेत्र परिवार सभा में मूल्यांकन विधा से समन्वित रहते हुए मंडल परिवार सभा में समन्वित रहना न्याय है।
  8. 8. समन्वित मूल्यांकन सम्पन्न हर मंडल परिवार सभा, मंडल समूह सभा के साथ समन्वित रहना न्याय है।
  9. 9. मुख्य राज्य सभा मूल्यांकन सहित मंडल सभा परिवार सभा के साथ समन्वित रहना न्याय है।
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