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  1. 4) हर मानव सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व दर्शन ज्ञान संपन्न होना रहना - न्याय है।
  2. 5) जागृत परंपरा पीढ़ी से पीढ़ी में सुलभ होना - न्याय है।
  3. 6) पीढ़ी से पीढ़ी में मानवीयता पूर्ण आचरण सुलभ होना - न्याय है।
  4. 7) सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व ज्ञान सर्वसुलभ होना - न्याय है।
  5. 8) परंपरा में जीवन ज्ञान सुलभ होना - न्याय है।
  6. 9) मानव परंपरा में अखण्ड समाज ज्ञान सुलभ होना, सार्वभौम व्यवस्था ज्ञान सुलभ होना - न्याय है।
  7. 10) मानव परंपरा में सार्वभौम व्यवस्था ज्ञान सर्वसुलभ होना - न्याय है।
  8. 11) चेतना विकास मूल्य शिक्षा रूप में परंपरा में मानवीय शिक्षा संस्कार सुलभ होना - न्याय है।
  9. 12) परंपरा में सुरक्षा सुलभ होना - न्याय है।
  10. 13) परंपरा में तन-मन-धन रूपी अर्थ का सदुपयोग व मूल्यांकन सुलभ होना - न्याय है।
  11. 14) परंपरा में हर परिवार सहज आवश्यकता से अधिक उत्पादन सुलभ होना - न्याय है।
  12. 15) परंपरा में श्रम मूल्य के आधार पर विनिमय सुलभ होना - न्याय है।

व्यवहार परंपरा में न्याय

  1. 1. परंपरा में यथार्थता सुलभ रहना न्याय है।
  2. 2. परंपरा में वास्तविकता सुलभ रहना न्याय है।
  3. 3. परंपरा में सत्यता सुलभ रहना न्याय है।
  4. 4. परंपरा में स्थिति सत्य बोध सुलभ रहना न्याय है।
  5. 5. परंपरा में वस्तुगत सत्य बोध सुलभ रहना न्याय है।
  6. 6. परंपरा में सहअस्तित्व सहज प्रमाण सुलभ रहना न्याय है।
  7. 7. परंपरा में सहअस्तित्व में विकास क्रम, विकास, जागृति क्रम, जागृति बोध सुलभ रहना न्याय है।
  8. 8. परंपरा में जीवन सहज प्रयोजन, शरीर सहज आवश्यकता स्पष्ट रहना न्याय है।
  9. 9. परंपरा में जागृत मानव स्वभाव सुलभ रहना न्याय है।
  10. 10. परंपरा में सर्वतोमुखी समाधान सुलभ रहना न्याय है।
  11. 11. परंपरा में समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व सुलभ व प्रमाणित रहना न्याय है।
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