शिष्य गुरु के साथ विश्वास निर्वाह निरंतरता :-
गौरव, कृतज्ञता, प्रेम, सरलता, सौजन्यता, अनन्यता भावपूर्वक जिज्ञासा सहित वस्तु व सेवा अर्पण-समर्पण रूप में
बहन-भाई, भाई-बहन के साथ विश्वास निर्वाह निरंतरता :-
सम्मान, गौरव, कृतज्ञता, प्रेम, सौहार्द्रता, सरलता, सौजन्यता, अनन्यता भावपूर्वक वस्तु व सेवा अर्पण-समर्पण रूप में
मित्र मित्र के साथ विश्वास निर्वाह निरंतरता :-
स्नेह, प्रेम, सम्मान, निष्ठा, अनन्यता, सौहार्द्रता भावपूर्वक वस्तु व सेवा अर्पण-समर्पण रूप में
साथी सहयोगी के साथ विश्वास निर्वाह निरंतरता :-
स्नेह, सौजन्यता, निष्ठापूर्वक वस्तु व सेवा प्रदान रूप में
सहयोगी साथी के साथ विश्वास निर्वाह निरंतरता :-
गौरव, सम्मान, कृतज्ञता, सौहार्द्रता, सौम्यता, सरलता भावपूर्वक सेवा अर्पण-समर्पण रूप में
पति पत्नी के साथ विश्वास निर्वाह निरंतरता :-
स्नेह, गौरव, सम्मान, प्रेम, निष्ठा, सौहार्द्रता, अनन्यता पूर्वक सद् चरित्रता सहित वस्तु व सेवा अर्पण-समर्पण रूप में
पत्नी पति के साथ विश्वास निर्वाह निरंतरता :-
स्नेह, गौरव, सम्मान, प्रेम, निष्ठा, सौहार्द्रता, अनन्यता पूर्वक सद् चरित्रता सहित वस्तु व सेवा अर्पण-समर्पण रूप में
ये सभी स्वयं स्फूर्त विधि से व्यवस्था व समग्र व्यवस्था में भागीदारी के रूप में है।
उक्त संबंधों के सदृश्य मामा, चाचा, भाई, मित्र और मामी, चाची, बहन, सहेली के रूप में पहचान संबोधन दूर-दूर तक अथवा इस धरती के सम्पूर्ण मानव पर्यंन्त संबोधन सहज है। यह सामाजिक अखण्डता सार्वभौम व्यवस्था के अर्थ में सार्थक है।
संबंधों की पहचान के साथ ही निर्वाह प्रवृत्ति उदय होती है।