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शिष्टतापूर्ण दृष्टि :- अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिंतन रूपी दृष्टि दृष्टा पद प्रतिष्ठा में पारंगत क्रियाशील रहना।

संस्कार :- ज्ञान, विवेक, विज्ञान सहज स्वीकृति, अनुभव प्रमाण परंपरा, जिसका प्रमाण ही अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था सूत्र व्याख्या में पारंगत होना प्रमाण परंपरा है।

परंपरा :- परंपरा में मानव सहज मानवीयता पीढ़ी से पीढ़ी में अन्तरित होना न्याय है।

मानवीयता :- मूल्य, चरित्र, नैतिकता सहज संयुक्त अभिव्यक्ति, सम्प्रेषणा, प्रकाशन परंपरा होना न्याय है।

  1. 1. शिक्षा में मानव का अध्ययन सम्पन्न होना न्याय है।
  2. 2. भौतिक-रासायनिक और जीवन वस्तु का अध्ययन होना न्याय है।
  3. 3. सहअस्तित्व में अध्ययन न्याय है।
  4. 4. हर मानव में, से, के लिये आत्मनिर्भर होने योग्य शिक्षा सर्वसुलभ होना न्याय है।
  5. 5. शिक्षा-संस्कार में मानव लक्ष्य, जीवन मूल्य, स्थापित मूल्य, शिष्ट मूल्य व वस्तु मूल्य बोध होना न्याय है।
  6. 6. मानव संस्कृति-सभ्यता, विधि-व्यवस्था बोध होना न्याय है।

7.2 (14) परिवार में न्याय

  1. 1. परिवार में संबंधों की पहचान सहित मूल्यों का निर्वाह, मूल्यांकन, परस्परता में तृप्ति न्याय है।
  2. 2. परिवार सहज आवश्यकता से अधिक उत्पादन समृद्धि का प्रमाण न्याय है।
  3. 3. समाधान, समृद्धि सम्पन्न व्यवस्था सहज प्रमाण न्याय है।
  4. 4. जागृत मानव परिवार में समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी, भागीदारी सहज एकरूपता सामाजिक अखण्डता सूत्र है। यह समाधान व न्याय है।
  5. 5. जिम्मेदारी, भागीदारी में निष्ठा सहज प्रमाण न्याय है।
  6. 6. परिवार सहज व्यवस्था परंपरा का प्रमाण न्याय है।
  7. 7. जागृत मानव परिवार में, से, के लिये हर एक सदस्य का समग्र व्यवस्था में भागीदारी करने के लिये निर्वाचित होने योग्य होना न्याय है।
  8. 8. परिवार सहज व्यवहार व्यवस्था में भागीदारी करने के लिए हर नर-नारी आत्मनिर्भर, स्वतंत्र, स्वयंस्फूर्त उत्साहित रहना न्याय है।
  9. 9. परिवार व ग्राम सहज वैभव की पहचान बनाये रखना, आगन्तुकों की पहचान करना न्याय है।
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