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7.2 (12) स्वावलंबन आत्मनिर्भरता (समाधान) में न्याय

  1. 1. हर मानव जागृत परंपरा में अनुभव व अनुभव सहज प्रमाण क्रिया के रूप में प्रतिष्ठा है।
  2. 2. अनुभव ही प्रमाण परम है। यही समाधान है।
  3. 3. अनुभव मूलक विधि से ही आत्मनिर्भरता सहज सूत्र व्यवस्था स्पष्ट है।
  4. 4. सहअस्तित्व में अनुभव होना जागृत मानव परंपरा में समाधान वैभव है।
  5. 5. अनुभव पूर्वक ही हर नर-नारी समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी, भागीदारी करना प्रमाण है। यही आत्मनिर्भरता है। यही न्याय है।
  6. 6. समझदारी के आधार पर विवेक सम्मत विज्ञान, विज्ञान सम्मत विवेक पूर्वक हर नर-नारी समाधान सम्पन्न होते हैं। तभी उत्पादन से स्वावलम्बन न्याय है।
  7. 7. समाधान पूर्वक ही हर आयाम, कोण, दिशा, परिप्रेक्ष्य में सफलता सहित निर्णय लिया जाता है। यह आत्मनिर्भरता न्याय है।
  8. 8. सहअस्तित्व, समृद्धि, अभयता पूर्वक जीने के लिये समाधान पूर्वक निर्णय लिया जाता है। यह आत्मनिर्भरता न्याय है।
  9. 9. परिवार व्यवस्था में जीने के लिए हर नर-नारी समाधान पूर्वक निर्णय लेना सहज है। यह आत्मनिर्भरता न्याय है।
  10. 10. हर परिवार अपने सन्तान को आत्मनिर्भर सम्पन्न होने के लिए पोषण-संरक्षण पूर्वक अनुभवगामी प्रेरणा स्रोत है। यह आत्मनिर्भरता न्याय है।
  11. 11. आत्मनिर्भरता पूर्वक ही हर नर-नारी मानवीयता पूर्ण आचरण करते हैं। यह आत्मनिर्भरता समाधान व न्याय है।
  12. 12. शिक्षा-संस्कार, न्याय-सुरक्षा, उत्पादन-कार्य, विनिमय-कोष, स्वास्थ्य-संयम कार्यों को प्रमाणित करना आत्मनिर्भरता न्याय है।
  13. 13. अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी करना सर्वतोमुखी समाधान आत्मनिर्भरता न्याय है।

7.2 (13) शिक्षा-संस्कार में न्याय

शिक्षा :- शिष्टता पूर्ण दृष्टि का उदय होना।

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