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बौद्धिक रूप में परिभाषा विनिमय :- विकास व जागृति संगत उपयोगिता पूरकता सहज निरंतरता में, से, के लिए नियम, नियंत्रण, संतुलन विधि से उत्पादित वस्तुओं का श्रम मूल्य के आधार पर आदान-प्रदान समाधान एवं न्याय है।

व्यवहारिक रूप में परिभाषा विनिमय :- श्रम नियोजन, उपयोगिता प्रमाण, मूल्यांकन उपयोगिता के आधार पर श्रम मूल्य का आदान-प्रदान समाधान एवं न्याय है।

प्रणाली :- दश सोपानीय व्यवस्था में श्रम मूल्य का मूल्यांकन सामान्यीकरण परंपरा समाधान एवं न्याय है।

पद्धति :- विनिमय-कोष परंपरा एवं कोषों के परस्परता में समन्वयता समाधान एवं न्याय है।

नीति :- दश सोपानीय परिवार सभा में समन्वयता पूर्ण निश्चय आचरण परंपरा समाधान एवं न्याय है।

प्रयोजन :- लाभ-हानि मुक्त विनिमय और प्रत्येक परिवार में समृद्धि सहज प्रमाण, ज्यादा-कम से मुक्ति समाधान एवं न्याय है। समृद्धि ज्यादा-कम से मुक्ति है।

विनिमय में न्याय

  1. 1. हर जागृत मानव परिवार सहज आवश्यकता की पहचान न्याय है।
  2. 2. हर जागृत मानव परिवार में सहज आवश्यकता से अधिक उत्पादन करना न्याय है।
  3. 3. जागृत मानव परिवार में उत्पादित वस्तुओं का मूल्यांकन (श्रम+उपयोगिता = वस्तु मूल्य) करना न्याय है।
  4. 4. जागृत मानव परिवार में उत्पादित वस्तुओं का श्रम, उपयोगिता के आधार पर विनिमय करना न्याय है।
  5. 5. श्रमशीलता को निपुणता-कुशलता-पांडित्य के रूप में स्वीकार करना न्याय है।
  6. 6. निपुणता-कुशलता पूर्वक श्रम नियोजन की स्वीकृति पाण्डित्य सहज विधि से मूल्यांकन करना न्याय है।
  7. 7. पांडित्य पूर्वक किया गया मूल्यांकन होने की स्वीकृति व प्रक्रिया न्याय है।
  8. 8. मूल्यांकन पूर्वक समाधानित रहने का प्रमाण न्याय है।
  9. 9. सामान्य आकाँक्षा संबंधी वस्तुओं को आवश्यकता से अधिक पाकर समृद्धि का, महत्वाकाँक्षा संबंधी वस्तुओं को आवश्यकता के अनुरूप पाकर समाज गति में सदुपयोग सहज प्रमाण रूप में सत्यापन करना न्याय है।
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