इस मुद्दे पर मध्यस्थ दर्शन के नजरिये से यह पता चलता है कि स्थिति में बल, गति में शक्ति प्रकट होता है । इसका तात्पर्य यह हुआ, दूसरे पर प्रभाव प्रमाणित करने के क्रम में यांत्रिक प्रक्रिया रूपी शक्ति का परिचय, पहचान होता है । स्थितियाँ होने के आधार पर पहचानने में आता है । इस तथ्य को अथवा सिद्धान्त को परीक्षण करने की बहु विधायें मानव के सम्मुख समीचीन है । समीचीनता का तात्पर्य पास में होने से, उपलब्ध होने से है । जैसे एक पत्थर, उसको हम उठाने जाते हैं, उठाते हैं, तब पत्थर एवं हमारे संयोग का जैसा भी बोध होता है जैसा भी समझ में आता है, उसको भार कहते हैं । ये भार अपने आप से धरती के साथ सहअस्तित्व सूत्र प्रमाणित करने के अर्थ में पाया जाता है । यही चीज, इस प्रकार के भार का अनुभव हर मानव में होने की स्थिति स्पष्ट है । जैसा एक खाली घड़ा, उसमें पानी भर दिया अथवा मिट्टी भर दिया अथवा आलू या अनाज भर दिया तब उसको उठावें । उठाने पर जैसा लगता है, उसको भार कहा । हर मानव अपने में मनाकार को साकार करने वाला होने के आधार पर और कल्पनाशील, कर्मस्वतंत्र होने के आधार पर भार को कैसे नापा या तौला जाय, इसको सोचा और इसका उत्तर पा गया । तौलने की विधि तय कर लिया । मापने की विधि तय कर लिया । उससे बड़ा, उससे बड़ा ट्रक और रेल आदि के वजन को भी तौलने, नापने योग्य यंत्र बना लिया । हर दिन इसको हर व्यक्ति देखता ही है । पूरा भार धरती के साथ सहअस्तित्व को प्रमाणित करने के क्रम में होने वाला विन्यास है, सिद्धान्त है । इस ढंग से भार सहअस्तित्व से अनुप्राणित होना पाया जाता है । हर इकाई स्थिति में बल सम्पन्न, गति में शक्ति को प्रमाणित प्रकाशित करते हैं ।
इस क्रम में यह समझ में आता है कि हर वस्तु निश्चित अच्छी दूरी में अपने अपने व्यवस्था को बनाये रखते हैं । जैसे एक परमाणु में एक से अधिक परमाणु अंश निश्चित दूरी में रहते हुए त्व सहित व्यवस्था को आचरण के रूप में प्रकट करते हैं, जिसका दृष्टा मानव है । ऐसी निश्चित अच्छी दूरी के बीच में अगर दूरी बढ़ती है तब परमाणु में मध्यांश के रूप में कार्य करता हुआ मध्यस्थ क्रिया, अपना बल प्रयोग करता है और अंशों पास बुला लेता है । अगर परमाणु अंश मध्य में क्रियारत मध्यांश के पास आने लगता है, तभी भी मध्यांश अपना बल लगा कर अंश को अच्छी दूरी में निश्चित कर लेता है । यह परमाणु में होने वाली नियंत्रण क्रिया है । इन्हीं क्रियावश परस्पर दूरी पर नियंत्रण बना रहता है । परमाणु, अणु के रूप में जब होते हैं, मध्यांशों के आधार पर ही परस्पर आकर्षण बल, चुम्बकीय बल संपन्नता के आधार पर प्रवर्तित होता है । फलतः एक परमाणु दूसरे परमाणु के साथ जुड़कर अणु बंधन सहित अणु कहलाते हैं । ऐसे