प्रमाणित करता है, ऐसी स्थिति में मानव अपने स्वयं के संपूर्णता की ओर ध्यान देना स्वाभाविक होना पाया जाता है । इसके विपरीत सापेक्ष विधि से छोटे बड़े की ओर ध्यान जाता है । स्वयं को बड़ा मानना एक आवश्यकता हो जाता है । उसे बरकरार रखने के लिए अन्य को छोटा बनाये रखना भी एक आवश्यकता बन जाती है । इस क्रम में द्रोह, विद्रोह, शोषण, भूखमारी, तोपमारी सारे काम संपन्न होते हैं । जिसके प्रति जब संवाद होता है तब उसकी अनौचित्यता को स्वीकार करते हैं । इस ढंग से मानव अंतर्विरोधी हो जाता है । इस प्रकार की स्थिति को हम न घर की न घाट की भाषा से संबोधित करते हैं । इसी से अनिश्चयता वाद तैयार होता है । फलतः मानव संपूर्ण प्रकार की कुंठा अथवा आवेश का शिकार हो जाता है । स्वभाव गति से दूर हो जाता है । फलस्वरूप असामाजिकता, अव्यवस्था हाथ आती है । अव्यवस्था रूपी अप्रत्याशित घटनायें घटित होती हैं । यह पूर्णतया मानव कुल के लिए अनावश्यक सिद्ध हुआ । इसीलिए इसके विकल्प में स्वभाव गति, स्थिति, निश्चयता के साथ निश्चित योजना सहित आशावादिता एवं प्रमाण संपन्न होना आवश्यक हो गया । यह सहअस्तित्व विधि से सर्वमानव के लिए समीचीन है ।
मुख्य मुद्दा सहअस्तित्व प्रमाणित होना ही सूत्र है । हर कार्य विन्यास, प्रवृत्ति, प्रयास, क्रिया, व्यवहार, फल परिणाम के साथ ही सहअस्तित्व मूल्यांकित होना स्वाभाविक है । मूल्यांकन करने वाला मानव ही है ।
सहअस्तित्ववादी अथवा सच्चाई विधि से मानव के प्रमाणित होने की दीर्घकाल से प्रतीक्षा रही है । यह प्रतिक्षा मानव में ही रही है । यह सार्थक होने के लिए सहअस्तित्ववादी क्रिया प्रणाली का अध्ययन मानव, मानवत्व सहित व्यवहार में प्रमाणित होने के लिए पर्याप्त होना पाया गया । इसीलिए इसका उद्घाटन होना आवश्यक रहा । सहअस्तित्व ही परम सत्य है ।
स्थिति गति अपने स्वरूप में दबाव और प्रवाह का संयुक्त रुप है । कुछ मिसाल में दबाव रहते हुए प्रवाह नहीं होता है । जैसे धरती के ऊपर पत्थर, धरती के ऊपर तालाब में पानी प्रवाह दिखाई नहीं पड़ता । धरती के ऊपर नदी में प्रवाह दिखाई पड़ती है । पानी के प्रवाह में दबाव सुस्पष्ट है । दबाव रहता ही है । पानी का प्रवाह ढाल की ओर, ढाल अन्ततोगत्वा समुद्र तक जुड़ना । इसलिए सभी नदी का पानी समुद्र तक पहुँचना, स्वभाविक विधि से अथवा नियति विधि से सुस्पष्ट हो चुका है । पानी का हर दबाव, प्रवाह दूसरे प्रकार के प्रवाह, दबाव में परिवर्तित हो सकता है । इसमें से दबाव ही परिवर्तन का प्रधान कारण है । जैसा पानी का वाष्प निश्चित