दबाव के उपरान्त निश्चित प्रकार के यंत्रों को संचालित करने योग्य हो जाता है । जिसके फलन में चुम्बकीय विद्युत को पाया जाता है । इसमें से चुम्बकीयता दबाव के रुप में, विद्युत तरंग प्रवाह के रुप में होना स्पष्ट हो चुकी है । इससे यह पता लगता है कि कोई भी बल, दूसरे प्रकार के बल और प्रवाह का कारक बन सकता है । इसी विधि से तैलीय वस्तु को उष्मित करते हुए अर्थात् जलाते हुए कुछ यंत्रों को संचालित करना मानव परंपरा में सुलभ हो गया है । ऐसे यंत्रों से भी अनेक प्रकार के कार्य करता हुआ देखने को मिलता है । जैसे धरती, पानी, हवा में चलने वाले यंत्रों के रुप में देखने को मिलता है । ऐसे तेल दहन प्रक्रिया से विद्युत पैदा करने वाले यंत्रों को संचालित किया जाता है । फलतः विद्युत चुम्बकीय प्रवाह और दबाव होता है । इसी प्रकार विकिरणीय द्रव्यों से भी उष्मा उद्गमन प्रक्रिया पूर्वक विद्युत प्रसारीय यंत्रों को भी संचालित किया जाना मानव ने अभ्यास किया है । इनके विसर्जन अर्थात् खनिज, कोयला, तेल और विकिरणीय द्रव्यों का विसर्जन अथवा अवशेष प्रदूषण का कारण बन बैठा है । इस मुद्दे पर पहले अध्ययन कर चुके हैं । इसके विकल्प के संदर्भ में भी प्रस्ताव के रूप में पानी के प्रवाह बल की ओर ध्यानाकर्षण किया गया है । इसी के साथ हवा और समुद्री तरंग की ओर भी ध्यान जाना आवश्यक है । सूर्य उष्मा की ओर भी मानव का ध्यान जाना, चुम्बकीय विद्युत धारा को प्राप्त करने के क्रम से उत्साहित होने की आवश्यकता है । तभी मानव का प्रदूषण कारी नियति विरोधी, विकास विरोधी, जागृति विरोधी, मानव विरोधी, धरती के वातावरण विरोधी, महा अपराध परंपरा से मुक्ति पाना संभव है । यह अस्तित्व विधि से स्थिति गति को जाँचने पर पता लगता है (जाँचने का मतलब परीक्षण, निरीक्षण, सर्वेक्षण पूर्वक निश्चय करने से है) कि सभी इकाईयों की स्थिति में बल, गति में शक्ति का प्रदर्शन, प्रकाशन किये रहते हैं । ऐसी स्थिति, छोटे से छोटे और बड़े से बड़े, सम्पूर्ण इकाईयों में समान रुप में होना पाया जाता है । स्थिति गति संपन्न इकाई व्यवस्था व व्यवस्था में भागीदारी के रुप में होना पहले से स्पष्ट हो चुका है । स्थिति में बल संपन्नता का मतलब स्वयं में व्यवस्था का प्रमाण, गति में शक्ति का मतलब समग्र व्यवस्था में भागीदारी है । मूलतः हर इकाई व्यापक वस्तु में संपृक्त रहने के फलस्वरुप ऊर्जा संपन्नता, बल संपन्नता होना ज्ञातव्य है । हर इकाई के मूल में परमाणु ही है । परमाणु ही भौतिक, रासायनिक, जीवन क्रिया के रुप में कार्य करता हुआ सुस्पष्ट है । जीवन परमाणु अणु बंधन, भार बंधन से मुक्त तथा भ्रमवश आशा, विचार, इच्छा बंधन से युक्त रहते हैं । अन्य सभी परमाणु जो भौतिक रासायनिक क्रिया में भागीदारी करते हैं, ये सब अणु बंधन, भार बंधन से युक्त रहते हैं । ऐसे अणु बंधन, भार बंधन वश ही छोटी रचना, बड़ी रचना के रुप में रचित होना पाया जाता है । सबसे
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