रखना है । यह परिवार में न्याय को प्रमाणित किये रहने के रूप में प्रकट होता है । इन सभी तथ्यों को अध्ययन करने में संपूर्ण मानव के लिए शुभ, समाधान, सत्य का सुस्पष्ट नजरिया प्रमाणित होता है । इसी की आवश्यकता है । इसी परंपरा विधि से संपूर्ण अध्ययन समझ में आता है । मानवीय गुणों से ही मानव की मौलिकता परस्पर समझ में आती ही है । इसी प्रकार हर अवस्था, हर पद में विद्यमान इकाईयों का उन उनके गुण, स्वभाव, धर्म रूप के साथ अभिव्यक्त रूप में प्रमाणित होती रहती है । इनमें से मानव के अतिरिक्त सभी अवस्था और पदों में हर इकाई अपने में त्व सहित व्यवस्था के रूप में है ही । मानव भी इकाई होने के कारण संज्ञानीयता पूर्वक संवेदनशीलता में नियंत्रण प्रमाणित होने के पर्यन्त जागृत होने की आवश्यकता है । मानव का तात्पर्य ही है - सहअस्तित्व में संपूर्ण पद, अवस्था में स्थित जड़-चैतन्य प्रकृति को जानना, मानना, पहचानना, निर्वाह करना । इस विधि से मानव में अखण्डता, सार्वभौमता, जीवों में सामुदायिकता, वनस्पति में जातियता, प्रजातियता और पदार्थावस्था में विकासक्रम गत अंशों के संख्या भेद से अनेक यथास्थितियाँ पूर्वक प्रमाणित होना पाया जाता है । अस्तित्व में विविधता होते हुए भी राशि विधि उन अवस्था और पद भेद से मानव कुल पहचानने की व्यवस्था, सहअस्तित्व सूत्र व्याख्या से अध्ययनगम्य है ।

11. बल-शक्ति (स्थिति-गति)

हम मानव विगत से बल और शक्ति के बारे में बहुत सारे अनुमान लगाते रहे हैं । आधुनिक विज्ञान युग आने के बाद शक्ति के बारे में और निष्कर्ष निकालने का प्रयोग किया गया । अभी तक पूर्ण निष्कर्ष विज्ञान विधा से निकला ही नहीं, मानवीयता के लिए कुछ निकला नहीं, यह विचारणीय बिन्दु है । इस संदर्भ में विज्ञान विधा से दबाव को बल के रूप में और गति, तरंग और प्रवाह को शक्ति के रूप में पहचानने की कोशिश हुई है । इसमें बहुत सारे उदाहरण प्रस्तुत किये । विद्युत तरंग और चुम्बकीय बल के रूप में, उसी प्रकार शब्द तरंग और दबाव के रूप में, प्रवाह में होने वाले तरंग और दबाव के रूप में, इन विविध प्रकारों से अध्ययन कराने की कोशिश की गई । इन सब में यह पाया गया कि इन सबमें मध्यस्थीयकरण होने के तथ्य को नकारा गया है । ये सब अध्ययन आवेशित गति पर ही आधारित हैं । स्वभाव गति में होने पर बल और शक्ति कहाँ चले जाते हैं यह प्रश्न तो आता ही है ।

Page 99 of 166