पाया जाता है । इस प्रकार हर परिणाम मात्रात्मक व गुणात्मक श्रृंखला में सजा हुआ है । इसी में परिणाम ध्रुव, दीर्घ परिणाम के रुप में होना पाया जाता है । ये मुख्य रुप में यथास्थितियों की स्थिरता, अस्थिरता की गणना में स्पष्ट होती है । प्रत्येक यथास्थितियाँ सहअस्तित्व सूत्र से सूत्रित होने के आधार पर पूरकता और उपयोगिता पूरकता के अर्थ में सार्थक रहता है । इस प्रकार सभी वस्तु की सार्थकता समझ में आती है । एक अणु का भी ऐसा ही इतिहास है, एक अणु दूसरे अणु के साथ भी, परमाणु का प्रभाव क्षेत्र संबंधी क्षेत्र नियंत्रण बनाये रखते हुए एक दूसरे के साथ जुड़ कर पिण्ड रुप हो जाते हैं । इसमें मानव का कोई योगदान नहीं रहता है । ये सारे क्रियाकलाप, पूरकता और उपयोगिता विधि से जागृति और उसकी निरंतरता तक में सार्थकता को प्रमाणित किये रहते हैं । सभी अवस्थायें एक दूसरे के साथ जुड़ी हुई होती हैं । जैसे भौतिक क्रियाकलाप को रासायनिक क्रियाकलाप से, रासायनिक क्रियाकलाप को जीवों के क्रियाकलाप से और भौतिक रासायनिक क्रियाकलाप को मानव के क्रियाकलाप से अलग रखते हुए कोई कार्य व्यवहार संपन्न नहीं होता है, ना ही संपन्न किया जा सकता है । ये सब मानव के साथ अविभाज्य रुप में जुड़े ही रहते हैं । इनकी मर्यादायें निभाते ही रहते हैं । इनके साथ मर्यादा निभाने के लिए मानव को जानकारी होने की आवश्यकता है ।
मानवेत्तर संपूर्ण प्रकृति मानव के लिए उपयोगी होते हुए मानव, मानवेत्तर प्रकृति के लिए पूरक होने से वंचित रहना ही संपूर्ण समस्याकारी प्रवृतियों का आधार रहा है । इससे क्रमागत विधि से जो कुछ भी उपलब्धियाँ मनाकार को सार्थक करने में हुई, उसका भी उपयोग सदुपयोग का रास्ता इसीलिए अड़चन में पड़ गया कि मनः स्वस्थता का भाग अपने आप में उपेक्षित रहा । इसीलिए इस वर्तमान में मनः स्वस्थता का अति आवश्यक होना समझ में आता है । सहअस्तित्व विधि से ही मनः स्वस्थता सर्वसुलभ होना पाया जाता है, यही सर्वशुभ की संभावना सुस्पष्ट है । मानव अपने में समाधान संपन्नता के उपरान्त ही मनः स्वस्थता को प्रमाणित करने में समर्थ होता है । समझ की परिपूर्णता ही मनः स्वस्थता का स्वरुप है । समझ सहअस्तित्व सहज स्वीकृति है। इस प्रकार संपूर्ण ज्ञान स्वीकृति के रुप में है । स्वीकृति, अस्वीकृति का अधिकार हर मानव में निहित है ही ।
स्थिति गति का वैभव धरती, सौर व्यूह, अनेक सौर व्यूह, आकाश गंगा, सभी आकाश गंगा में होना पाया जाता है । इसका प्रमाण यह है, परमाणु से लेकर धरती तक सभी अपने अपने स्थिति गति में प्रमाणित होने तक अध्ययन गम्य हो जाता है । यहाँ तक अध्ययन हर मानव के लिए