दूसरे के हस्तक्षेप के बिना सभी एक दूसरे को पहचानते हुए निश्चित आचरण कर रहे हैं और सौर व्यूह की व्यवस्था में भागीदारी कर रहे हैं ।
इसीलिए स्थिति है ही, गति भी है । इसी आधार पर धरती की स्थिति गति सबंधी अध्ययन भी हमारे समझ आना स्वभाविक है । इसी क्रम में एक सौर व्यूह अनेक सौर व्यूह के साथ निश्चित अच्छी दूरी में कार्य विन्यास करते हुए, सौर व्यूह त्व के वैभव को प्रकाशित करता है । ऐसे अनेकानेक सौर व्यूहों को अथवा ग्रह-व्यूहों को आज कल वैज्ञानिकों ने आकाश गंगा नाम दिया । आकाश गंगा भी अनेक होना पाया जाता है । ये सभी परस्परता में अच्छी दूरी में रहते हुए बड़ी व्यवस्था को बनाये रखने में भागीदारी करते हैं ।
12. परावर्तन-प्रत्यावर्तन
स्थिति-गति, बल-शक्ति के मुद्दे पर छोटे से छोटे, बड़े से बड़े इकाइयों के साथ, वह भी सभी पद और अवस्था में स्पष्ट हो चुकी है । अब परावर्तन-प्रत्यावर्तन संबंधी ज्ञान, विचार, निर्णय, प्रमाण, फल, परिणाम, ज्ञान का गवाही होने पर ध्यान देते हैं । गम्यस्थली के अर्थ में ही मानव सारे कार्य कलाप संपन्न करना चाहता है । जैसे मानव चलने लगता है, उसकी गम्यस्थली उसके सामने होना आवश्यक है । गम्यस्थली न हो, चलना ही हो, ऐसे मानव को हम क्या कहेंगे, हर मानव सोच सकता है । इसी प्रकार एक चींटी भी, एक हाथी भी, पशु पक्षी भी, जीव जन्तु भी, जितने भी चलायमान है, उनके गम्यस्थली उन-उन के साथ जुड़ा ही रहता है । इसका प्रमाण यही है कि सभी चल कर कोई निश्चित जगह पर पहुँचते रहते हैं । जल में तैरने वाले मगरमच्छ भी तैरते हुए निश्चित, निर्धारित जगह पर होते हैं । इस तरह से कुछ वस्तु धरती के हर स्थल पर होने वाले होते हैं । कुछ कहीं कहीं होने वाले होते हैं । कुछ अत्यल्प जगह में होने वाले होते हैं । जैसे हवा धरती के सभी ओर रहता है, सूर्य का प्रकाश एक ओर रहता है, एक ओर नहीं रहता है, जैसे नदी दूर-दूर तक बहती है, जैसे पहाड़ एक ही जगह में दिखाई पड़ता है । जैसा झाड़-पौधे एक ही जगह में रहते हैं । इसी धरती में मानव भी रहता है पक्षी भी रहता है । कुछ वर्ष पहले मानव ऐसा सोचता था कि पक्षियाँ ही दूर-दूर जाते हैं वह बदलकर अब मानव भी पूरी धरती में घूमता है । घूमते हुए भी कोई न कोई जगह में, स्थान में होता ही है । होना एक अवश्यंभावी रहता ही है । यह स्थिति-गति के साथ जुड़ी हुई तथ्य है । स्थिति के बिना गति होती नहीं । यह